तेलंगाना हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि अगर कोई अपनी जाति या फिर धर्म के बारे में नहीं बताना चाहता है तो इसके लिए विकल्प दिया जाए।
जन्म प्रमाणपत्र या फिर स्कूल ऐडमिशन का फॉर्म भरने में एक अलग से कॉलम दिए जाने का निर्देश दिया गया है। कोर्ट ने कहा है कि ऑनलाइन और फिजिकल दोनों तरह के फॉर्म में इस तरह का विकल्प होना चाहिए।
हैदराबाद के एक दंपती की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस के ललिता ने यह फैसला सुनाया है।
हैदराबाद के रहने वाले सांदेपु स्वरूपा और डेविड अज्जापागू ने अदालत से कहा था कि बेटे की जाति ना बता पाने की वजह से उनका प्रमाणपत्र नहीं जारी किया जा रहा है।
उन्होंने कहा था कि कोथाकोटा नगरपालिका प्रशासन जन्म प्रमाणपत्र जारी करने से इनकार कर रहा है।
इसके बाद जस्टिस ललिता ने राज्य के शिक्षा मंत्रालय से फॉर्म में परिवर्तन करने को कहा है।
उन्होंने कहा, संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत अगर अपने धर्म को मानने और प्रचार करने का अधिकार दिया गया है तो किसी भी धर्म को ना मानने का भी अधिकार है।
आर्टिकल 19 में इस तरह की स्वतंत्रता है। उन्होंने कहा कि जो लोग बिना जाति या धर्म के रहना चाहते हैं वे भी रह सकते हैं।
याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि उन्हें बिना किसी जाति या धर्म वाली पहचान के ही जन्म प्रमाणपत्र जारी किया जाए।
हालांकि अधिकारियों को कहना था कि उन्हें जाति और धर्म वाले कॉलम में जानकारी देनी होगी क्योंकि इसे खाली नहीं छोड़ा जा सकता।
दंपती के वकील एम वेंकन्ना ने कहा कि अधिकारियों ने फॉर्म को जो फॉर्मेट बनाया है वह बहुत सख्त है और किसी को अनुमति नहीं देता कि वह अपने धर्म या जाति की जानकारी ना दे।
स्कूली शिक्षा विभाग ने भी फॉर्म में जाति या धर्म के बारे में बताना अनिवार्य कर रखा है। इसके पीछे तर्क है कि जो वंचित या फिर पिछड़े वर्ग से आने वाले छात्र सरकार की योजनाओं का फायदा लेना चाहते हैं उन्हें यह जानकारी देनी जरूरी है।
वकील ने कहा था कि बहुत सारे लोग इससे दूर रहना चाहते हैं। उन्हें इस बात की भी अनुमति होनी चाहिए।