दिल्ली में अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर आए अध्यादेश का कांग्रेस ने भी सदन में विरोध करने का ऐलान किया है।
आम आदमी पार्टी की ओर से विपक्षी मीटिंग में शामिल होने के लिए इसकी शर्त रखी गई थी। ‘आप’ की इस शर्त पर कांग्रेस राजी हो गई है, लेकिन इसके बाद भी राज्यसभा का गणित उसके पक्ष में नहीं दिख रहा है।
लोकसभा में भाजपा का अपने दम पर ही बहुमत है। ऐसे में इस अध्यादेश को वह आसानी से पारित करा लेगी। लेकिन राज्यसभा में कांग्रेस, एनसीपी जैसे दलों के जरिए आम आदमी पार्टी को उम्मीद है कि वह अध्यादेश को रोक लेगी।
इसकी वजह यह है कि भाजपा का राज्यसभा में अपने दम पर बहुमत नहीं है। फिर भी भाजपा का पलड़ा उच्च सदन में भी भारी है।
इसकी वजह यह है कि सदन में उसके सबसे ज्यादा 92 सदस्य हैं। एनडीए को भी मिला लें तो कुल संख्या 104 हो जाती है। इसके बाद उसे 5 नामित सदस्यों और दो निर्दलीय सांसदों का भी समर्थन हासिल है।
यही नहीं भाजपा को वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल का भी समर्थन मिल सकता है, जो उसे कई अहम मु्द्दों पर सदन में सपोर्ट कर चुके हैं।
फिलहाल उच्च सदन की कुल संख्या 237 है। ऐसे में बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस का समर्थन निर्णायक होगा।
उच्च सदन में BJD और वाईएसआर के हैं 9-9 सदस्य
वाईएसआर कांग्रेस और बीजेडी दोनों के ही सदन में 9-9 सदस्य हैं। यदि इन दो दलों का समर्थन भी भाजपा को जाता है तो फिर कुल संख्या 111+18 के साथ 129 पर पहुंच जाएगी। साफ है कि 237 सदस्यों वाले उच्च सदन में भाजपा ही नंबरगेम में मजबूत होगी।
पहले भी कई अहम विधेयकों को पारित कराने में वाईएसआर कांग्रेस और बीजेडी ने भाजपा का ही साथ दिया था। दिल्ली के अध्यादेश का मुद्दा यूं भी इन दोनों दलों की क्षेत्रीय राजनीति या फिर उनके हितों को प्रभावित नहीं करता है।
इसलिए माना जा रहा है कि फिर से ये भाजपा के ही पाले में जा सकते हैं।
राज्यसभा में भाजपा पा सकती है 132 वोट
इनके अलावा बसपा, टीडीपी और जेडीएस भी कई बिलों पर सरकार का समर्थन कर चुके हैं। इन दलों का भी दिल्ली में राजनीतिक वजूद नहीं है।
इसके अलावा विपक्ष के महाजुटान से भी ये तीनों दल अलग दिख रहे हैं। इसलिए माना जा रहा है कि इनका समर्थन भाजपा को मिल सकता है। इस तरह वह राज्यसभा में 132 वोट हासिल करने की स्थिति है। यह उसके लिए बड़ी बात होगी।