रिपोर्ट में बताया गया है कि दो खराब मरम्मत कार्यों (साल 2018 में और हादसे के कुछ घंटों पहले) के कारण कोरोमंडल एक्सप्रेस अन्य ट्रेक पर मौजूद मालगाड़ी से टकरा गई थी।
रिपोर्ट में बताया गया है कि इसी तरह की घटना खड़गपुर रेलवे डिवीजन के तहत आने वाले बंगाल के एक स्टेशन पर 16 मई 2022 में हुई थी। उस दौरान गलत वायरिंग के चलते ट्रेन अलग ही रास्ते पर चली गई थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि लोकल सिग्नलिंग सिस्टम में बार-बार आ रही परेशानियों पर ध्यान दिया जाता, तो 2 जून को हुई घटना को रोका जा सकता था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सिग्नलिंग सर्किट अल्टरेशन के काम में पहले हुई खामियों के चलते कोरोमंडल एक्सप्रेस का एक्सीडेंट हुआ था। खास बात है कि रिपोर्ट में दर्ज जानकारियां सीबीआई की जांच में शामिल होंगी।
हालांकि, एक तथ्य यह भी है कि रेल मंत्रालय इस रिपोर्ट को खारिज या स्वीकार भी कर सकता है।
आसान भाषा में समझें
रिपोर्ट के अनुसार, गलत सिग्नल मिलने के कारण ट्रेन मालगाड़ी वाले ट्रेक पर पहुंच गई थी और 128 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से टकरा गई। नतीजा हुई कि ट्रेन का अधिकांश हिस्सा पटरी से उतर गया और कुछ बोगियां बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस से भी टकरा गईं।
2018 में हुए मरम्मत के खराब कामों में केबल में आईं समस्याएं भी शामिल हैं, जिन्हें तब तो सुधार दिया गया था, लेकिन सर्किट बोर्ड पर उन्हें मार्क नहीं किया गया। जिसके चलते 2 जून को उसी पैनल पर काम कर रहे स्टाफ को उसकी जानकारी नहीं लग सकी।
रेलवे को सलाह
रिपोर्ट में रेलवे को इस तरह की घटनाओं पर जल्दी प्रतिक्रिया देने की सलाह दी गई है। कहा गया, ‘रेलवे को डिजास्टर रिस्पॉन्स सिस्टम की समीक्षा करनी चाहिए।’
इसमें SDRF और NDRF के साथ जोनल रेलवे के सहयोग की समीक्षा की बात को भी शामिल किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सिग्नल की वायरिंग की समीक्षा को लेकर भी अभियान शुरू किया जाना चाहिए।