गले तक कर्ज में डूबे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का खस्ता हाल जगजाहिर है। मगर अपने पड़ोसी की अय्याशी चरम पर है। सभी जानते हैं कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था जीवन-मरण की लड़ाई लड़ रही है।
पाकिस्तान की सरकार खुद को दिवालिया होने से बचने की पूरी कोशिश कर रही है। अहम बात यह है कि भले ही सऊदी अरब और चीन जैसे देशों ने पाकिस्तान सरकार को भरपूर मदद दी हो, लेकिन यह पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए ऊंट के मुंह में जीरे के समान है।
पाकिस्तान अपने खर्चे पर काबू नहीं कर पा रहा है। इसके बावजूद पाकिस्तान आईएमएफ के सामने भीख का कटोरा लिए खड़ा है मगर वित्तीय संस्थान अपनी शर्तों पर अड़ा है।
पाकिस्तान जून में खत्म होने वाले आईएमएफ के लोन कार्यक्रम से पहले किसी तरह यह 6.7 बिलियन डॉलर का लोन हासिल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है। मगर पाकिस्तान अपने कर्जों पर भी ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि पड़ोसी देश इस तरह कर्ज लेता रहा तो उसे चुका कैसे पाएगा?
ऐसी स्थिति में पाकिस्तान के कर्जों का हिसाब किताब सामने आया है। पाकिस्तान सरकार का कुल कर्ज पिछले एक साल में करीब 34.1 फीसदी बढ़कर 58.6 लाख करोड़ रुपए हो गया है। गौरतलब है कि पाकिस्तानी रुपया डॉलर के मुकाबले अपनी साख को गंवा चुका है।
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपया 286.83 तक गिर चुका है। पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान की तरफ से जारी सूचना के आधार पर अप्रैल के अंत में पाकिस्तान का क्रेडिट स्तर वार्षिक आधार के पर 34.1 प्रतिशत और मासिक आधार पर 2.6 प्रतिशत बढ़ा है। इसमें घरेलू कर्ज 36.5 लाख करोड़ रुपए और विदेशी कर्ज 22 लाख करोड़ रुपए हैं।
पिछले एक साल में पाकिस्तान का बाहरी कर्ज 49.1 फीसदी तक बढ़ गया है। घरेलू कर्ज का एक बड़ा हिस्सा सरकारी बांडों में खरीदने में खुर्च हुआ है। 25 लाख करोड़ रुपए अकेले इसी कैटेगरी में कर्ज को झोंका गया है। इन सबके बीच पाकिस्तान को राजनीतिक दिक्कतें, आर्थिक दिक्कतें, करेंसी वैल्यू में गिरावट और लगातार घटते विदेशी मुद्रा भंडार जैसी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
अप्रैल में पाकिस्तान की मुद्रास्फीति अप्रत्याशित रूप से बढ़कर 36.4 प्रतिशत हो गई। उच्च मुद्रास्फीति दर के पीछे मुख्य कारण पाकिस्तान में खाद्य कीमतों में वृद्धि है। पाकिस्तान मुद्रास्फीति मार्च में 35.4 प्रतिशत से बढ़कर अप्रैल में 36.4 प्रतिशत हो गई।