कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री को लेकर अब तक कांग्रेस कोई बड़ा फैसला नहीं ले सकी है।
हालांकि, संभावनाएं जताई जा रही हैं कि मंगलवार को यह गतिरोध भी खत्म हो जाएगा। फिलहाल, मुख्य रूप से यह जंग प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार और दिग्गज नेता सिद्धारमैया के बीच जारी है।
मौजूदा चुनाव और पुराना रिकॉर्ड देखें, तो शिवकुमार का पलड़ा भारी नजर आता है। बहरहाल एक ओर जहां शिवकुमार इनकार के बाद अब दिल्ली जाने को तैयार है।
वहीं, सोमवार को दिल्ली में मंथन में शामिल हुए दिग्गज नेता सिद्धारमैया ने अब तक मामले पर चुप्पी साध रखी है।
क्यों शिवकुमार का पलड़ा है भारी
वफादारी- खास बात है कि 60 वर्षीय शिवकुमार जवानी के दिनों से ही कांग्रेसी रहे हैं। इसके अलावा गांधी परिवार के प्रति भी वह वफादार रहे हैं।
हाल ही में उन्होंने कहा था कि भाजपा में शामिल होने के कई ऑफर मिले, लेकिन इनकार कर दिया। कॉलेज में उन्होंने एनएसयूआई का दामन थामा था। इसके बाद वह 7 बार विधायक बने।
कर्नाटक में कांग्रेस को खड़ा किया- साल 2020 में शिवकुमार कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रमुख बने। कहा जाता है कि राज्य में कांग्रेस को दोबारा तैयार करने में उनकी बड़ी भूमिका रही है। उनकी रणनीतियों और नेतृत्व में कांग्रेस को कर्नाटक में मजबूत किया।
आर्थिक मदद- कहा जाता है कि आर्थिक रूप से भी शिवकुमार कांग्रेस के बड़े मददगार हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने व्यक्तिगत रूप से कर्नाटक और कई राज्यों में भारत जोड़ो यात्रा को फंड दिया।
साथ ही उन्होंने विधानसभा चुनाव में भी काफी खर्च किया है।
संकटमोचक और समुदाय का समर्थन- हाल ही के समय में शिवकुमार कांग्रेस के संकटमोचक बनकर उभरे हैं। उन्होंने कर्नाटक के अलावा कई राज्यों में कांग्रेस को परेशानियों से निकालने में भूमिका निभाई है। समर्थन के लिहाज से देखें, तो उन्हें वोक्कलिगा समुदाय का खासा समर्थन हासिल है।
अनुभव- शिवकुमार के नेतृत्व में कांग्रेस ने 2023 विधानसभा चुनाव बड़े अंतर से जीता है। साथ ही उन्हें संगठन के अच्छे कप्तान के तौर पर भी जाना जाता है।
साथ ही अगर सिद्धारमैया के मुकाबले उनकी आयु भी मददगार हो सकती है। वह पिछली कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं।
सिद्धारमैया
उम्र और अनुभव में शिवकुमार से आगे सिद्धारमैया का भी सीएम पद के लिए दावा कमजोर नहीं है। साल 1983 में राजनीति की शुरुआत करने वाले नेता पहला चुनाव भारतीय लोक दल पार्टी के टिकट पर लड़े थे।
इस पार्टी का गठन साल 1974 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस के विपक्ष के तौर पर हुआ था। समय के साथ वह कुरुबा ओबीसी नेता के तौर पर बढ़े और पिछड़ा वर्ग, मुस्लिम और दलित वोट साधने पर जोर दिया।
भारतीय लोक दल पार्टी के बाद वह जनता पार्टी में और फूट के बाद जनता दल (सेक्युलर) का हिस्सा बने। साल 2006 में वह कांग्रेस में आए।
कहा जाता है कि पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा से अनबन के चलते उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा था। उन्हें बाद में कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया और 2013 में 122 सीटों पर जीत के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद सौंपा गया था।
खास बात है कि कर्नाटक की राजनीति का बड़ा नाम होने के बाद भी सिद्धारमैया हाल के समय में अपने लिए सुरक्षित सीट खोजने में असफल हुए हैं। हालांकि, इस बार उन्होंने वरुण सीट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की।