चीन अमेरिका को टक्कर देने के लिए दुनियाभर में अपने प्रभाव को बढ़ाने में जुटा हुआ है।
इस समय उसके टारगेट पर अफ्रीकी देश हैं। चीन चाहता है कि वह इन देशों में अपनी सैन्य और आर्थिक पहुंच बढ़ाए।
खास बात यह है कि चीन उन देशों को टारगेट करता है जो कि कर्ज तले दबे हुए हैं। तीसरी बार चीन की सत्ता में काबिज होने के बाद शी जिनपिंग ने मिशनमोड में काम शुरू कर दिया है।
चीन ने पहले कोलंबिया में बीआरआई के तहत अपना नया पोर्ट बनाया और अब उसकी नजरें बाटा और इक्वाटोरियाल गुएना पर हैं।
चीन चाहता है कि व ह उशुआइया में उसका नेवल बेस बने जिससे की उसके रास्ते अंटार्कटिका के लिए खुल जाएं और वह प्रशांत महासागर में आसानी से नजर रख सके।
बीजिंग पहले ही दक्षिण अफ्रीका के पास अपना सर्विलांस शिप तैनात करके इस इलाके पर नजर रख रहा है। चीन ने हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच आवाजाही पर नजर रखने के लिए डरबन में पोत तैनात किया।
चीन उन जगहों को टारगेट कर रहा है जहां या तो अमेरिका ध्यान नहीं दे रहा है, या फिर अमेरिका की चल नहीं रही है। जैसे कि टीन ने सोलोमन आइलैंड के साथ सुरक्षा समझौता किया।
इस इलाको को अमेरिका नजरअंदाज करता रहा है लेकिन चीन के यहां से हिंदा प्रशांत क्षेत्र में निगरानी करना आसान है। चीन यूरोप की तरफ भी अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है।
हाल ही में जर्मन चांसलर शोल्ज चीन पहुंचे थे। इससे पहले फ्रांस के राष्ट्रपति भी चीन के दौरे पर गए थे।
खाड़ी देशों में अपनी पकड़ बनाने के लिए भी चीन भरसक प्रयास कर रहा है। हाल ही में उसने दावा किया कि उसकी ही वजह से सऊदी अरब और ईरान के बीच चली आ रही दुश्मनी खत्म हो गई और दोनों देशों ने रणनीतिक संबंध फिर से शुरू कर दिए।
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों तीन दिन के दौरे पर बीजिंग पहुंचे थे।
चीन यूरोपीय देशों में भी अपना व्यापार बढ़ाना चाहता है। इसीलिए उसने जर्मनी और फ्रांस के रास्ते अपना रास्ता क्लियर करने का प्लान बनाया है।