कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार जोरशोर से शुरू हो गया है। राज्य में सबसे ज्यादा चर्चा लिंगायत समुदाय को लेकर हो रही है।
कांग्रेस और भाजपा दोनों ही इस समुदाय को रिझाने में कसर नहीं छोड़ रही हैं। चर्चा यह भी थी कि भाजपा इस बार लिंगायत समुदाय के ही किसी नेता को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बना सकती है।
हालांकि रिपोर्ट्स के मुताबिक गृह मंत्री अमित शाह इस बात पर राजी नहीं हैं। उन्हें लगता है कि अगर लिंगायत समुदाय के चेहरे को आगे किया गया तो गैरलिंगायत समुदाय एकजुट हो जाएंगे और भाजपा के खिलाफ खड़े हो सकते हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता रहे जगदीश शेट्टार के पार्टी छोड़कर कांग्रेस में जाने के बाद कांग्रेस ने हमला तेज कर दिया था। कांग्रेस यह जताने की कोशिश कर रही है कि भाजपा लिंगायत विरोधी है।
इसी के खिलाफ डैमेज कंट्रोल के लिए लिंगायत सीएम वाली थ्योरी सामने आई थी। शनिवार को बेंगलुरु में अमित शाह ने कहा, जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सवादी जैसे लोग भाजपा को बहुमत से 15-20 सीटें ज्यादा पाने से रोक नहीं पाएंगे। बता दें कर्नाटक में कुल 224 विधानसभा सीटें हैं। इस हिसाब से बहुमत का जादुई आंकड़ा 113 है।
भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने शुक्रवार को हुई बैठक के बाद कहा, कुछ लिंगायत नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद डैमेज को कम करने के लिए हमने यह सलाह दी थी कि लिंगायत चेहरे को मुख्यमंत्री पद के लिए आगे किया जाए।
हालांकि अमित शाह ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया और कहा कि इससे गैर लिंगायत वोट मिलने मुश्किल हो जाएंगे। शाह ने राज्य की भाजपा यूनिट से डबल इंजिन की सरकार और विकास, आरक्षण के मुद्दे को आगे रखने की सलाह दी है।
इसके अलावा कहा गया है कि 30 अप्रैल के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 20 जगहों पर रैलियां करेंगे। इसके अलावा अमित शाह भी 29 अप्रैल के बाद चुनाव प्रचार में उतरेंगे।
अमित शाह ने कर्नाटक के देवनाहल्ली में रैली की और इसके बाद भाजपा के पदाधिकारियों के साथ देर रात तक बैठक की। इस बैठक में मुख्यमंत्री बोम्मई, वरिष्ठ नेता बीएस येदियुरप्पा, कर्नाटक में भाजा के इनचार्ज अरुण सिंह, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष और अन्नामलाई, शोभा करांदलाजे समेत कई वरिष्ठ नेता मौजूद थे।
अमित शाह ने कहा कि शेट्टार, सवादी और आयानुर मंजुनाथ के खिलाफ अभियान शुरू किया जाए और उनकी ‘धोखेबाजी’ को जनता के सामने रखा जाए। शेट्टार का दावा है कि भाजपा ने जिस तरह का व्यवहार बीएस येदियुरप्पा के साथ किया है, लिंगायत समुदाय उसपर कभी भरोसा नहीं करेगा।