ग्लोबल वार्मिंग के चलते धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है। इसका बुरा असर फसलों पर भी देखने को मिल रहा है और पैदावार तेजी से घट रही है।
अन्य वैश्विक कारकों के अलावा, फसलों की पैदावार घटने से भी दुनिया में भुखमरी बढ़ रही है। इस समस्या का समाधान खोजने के लिए वैज्ञानिक और कई वैश्विक लगी हुई हैं।
इसी बीच पिछले साल अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) और संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के संयुक्त प्रयासों से अंतरिक्ष में कुछ बीज भेजे गए थे।
ये बीज अब वापस धरती पर आ गए हैं। पृथ्वी पर लौट फसल के इन बीजों को एक बड़ा मील का पत्थर माना जा रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अंतरिक्ष से धरती पर लौटे बीजों से कुछ ऐसी फसलें विकसित की जा सकेंगी जो पर्याप्त भोजन प्रदान करने में मदद कर सकें।
धरती गरम हो रही है इसलिए फसलों को भी इसके अनुकूल बनाना होगा। ये बीज उसमें मदद कर सकते हैं। पौधे स्वाभाविक रूप से अपने परिवेश में पनपने के लिए ही विकसित होते हैं, लेकिन फसलें जलवायु परिवर्तन की वर्तमान गति के साथ तालमेल बिठाने के लिए संघर्ष कर रही हैं।
दुनिया गर्म है और वैश्विक आबादी बढ़ रही है, जिससे दुनिया भर के किसानों को भोजन की मांग को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
क्या असर होगा?
इन किसानों का समर्थन करने और वैश्विक खाद्य सुरक्षा में सुधार करने के लिए, आईएईए और एफएओ ने अपने संयुक्त एफएओ/आईएईए सेंटर ऑफ न्यूक्लियर टेक्निक्स इन फूड एंड एग्रीकल्चर के माध्यम से बीजों को अंतरिक्ष में भेजा।
यूएन एजेंसी ने बताया कि ‘बेहद जरूरी फसलों में अगर प्राकृतिक, जेनेटिक एडॉप्शन की गति को बढ़ाया जाए तो उन पर ब्रह्मांडीय विकिरण (cosmic radiation) का क्या प्रभाव पड़ेगा’, यही जानने के लिए बीजों को अंतरिक्ष में भेजा गया। अब पृथ्वी पर उनकी (बीजों की) वापसी वैज्ञानिकों के लिए बड़ी कामयाबी है। वे बीजों के नतीजों का विश्लेषण शुरू करेंगे।
ये बीज भेजे गए थे
बीजों को 7 नवंबर 2022 को वर्जीनिया (अमेरिका) में नासा की वॉलॉप्स फ्लाइट फैसिलिटी से भेजा गया था। वे अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) में 5 महीने रहे। अंतरिक्ष में भेजे जाने के लिए अरबिडोप्सिस और सोरगम बीजों को चुना गया था।
अरबिडोप्सिस एक खास प्रकार की सरसों को कहते हैं। वहीं सोरघम एक प्रकार की ज्वार की फसल है। इन बीजों को इसलिए चुना गया क्योंकि तुलना करने के लिए वैज्ञानिकों के पास काफी डेटा पहले से उपलब्ध है। अब इन बीजों का विश्लेषण होगा।