उत्तर प्रदेश का माफिया डॉन अतीक अहमद पांच बार विधायक और एक बार लोकसभा का सांसद रह चुका था।
लिहाजा, उसकी राजनीतिक महत्वकांक्षाएं कम नहीं हुई थीं। वह अंडरवर्ल्ड से लेकर सियासी वर्ल्ड तक अपनी धाक मजबूत रखना चाहता था।
वह राजनीतिक पलटबाजी में भी धुरंधर था। उसने एक दशक के अंदर ही एक नहीं बल्कि दो-दो प्रधानमंत्रियों को चुनौती दी थी।
PM को चुनौती देने का पहला मामला:
किसी प्रधानमंत्री को अतीक अहमद द्वारा चुनौती देने का पहला वाकया 2008 से जुड़ा है। जब केंद्र में मनमोहन सिंह की अगुवाई में यूपीए सरकार थी।
सरकार को लेफ्ट पार्टियां और मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी बाहर से समर्थन कर रही थीं। अतीक अहमद तब यानी 2004 से 2009 तक के कार्यकाल में सपा से फूलपुर का सांसद था।
मनमोहन सिंह ने अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील करने की ठान ली थी। कई दौर की बातचीत के बाद सरकार इस नतीजे पर पहुंची थी लेकिन सरकार को समर्थन दे रही लेफ्ट पार्टियों ने इसका विरोध करते हुए सरकार से समर्थन वापस ले लिया था।
इस वजह से 22 जुलाई 2008 को लोकसभा में मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था।
मुलायम की सलाह कर दी थी दरकिनार:
उस वक्त अतीक अहमद हत्या के एक मामले में मैनपुरी जेल में बंद था। इलाहाबाद कोर्ट के आदेश पर अतीक अहमद को दो दिनों के संसद के विशेष सत्र में भाग लेने के लिए कड़ी सुरक्षा में दिल्ली लाया गया था, ताकि वह विश्वास मत परीक्षण में वोट कर सके।
जब लोकसभा में वोटिंग हुई तो अतीक अहमद ने मुलायम सिंह की सलाह को दरकिनार करते हुए सरकार के खिलाफ वोट दिया था।
मायावती से नजदीकी चाह रहा था अतीक:
हालांकि, मनमोहन सिंह की सरकार ने 543 सदस्यीय लोकसभा में तब 275 वोट हासिल कर लिए थे, जबकि सरकार के विरोध में सिर्फ 256 वोट ही पड़े थे।
सपा के 39 सांसदों में से छह ने सरकार के खिलाफ वोट किया था। उस वक्त यूपी की मुख्यमंत्री मायावती थीं और अतीक अहमद बसपा के लाइन पर चलकर उनसे नजदीकी बढ़ाना चाह रहा था। बसपा के सभी 17 सांसदों ने सरकार के खिलाफ वोट किया था।
पीएम को चुनौती देने का दूसरा मामला:
देश के प्रधानमंत्री को दूसरी बार अतीक अहमद ने 2019 में चुनौती दी, जब उसने पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी संसदीय सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा।
उस वक्त भी अतीक अहमद जेल में बंद था। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान अतीक प्रयागराज की नैनी जेल में बंद था। उसने जेल के अंदर से ही सारी चुनावी औपचारिकताएं पूरी की थीं।
उसके प्रतिनिधि ने वाराणसी आकर उसका नामांकन किया था लेकिन वाराणसी के लोगों ने उसे ठुकरा दिया था। उसे सिर्फ 855 वोट मिले थे जो कुल मतों का सिर्फ 0.08 फीसदी है।
इससे पहले उसे अदालत ने भी झटका दिया था। अतीक चुनाव लड़ने के लिए पेरोल चाहता था, जिसे कोर्ट ने ठुकरा दिया था।