चीन और पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्तों के बीच लंबे समय से तनातनी बनी हुई है। तीन साल पहले एलएसी पर चीन की चालबाजियों और पाकिस्तान से तमाम आतंकवाद के मसले पर लड़ने के बाद केंद्र सरकार ने अहम कदम उठाया है।
मोदी सरकार के इस फैसले के बाद चीन और पाकिस्तान तिलमिला गया है। दरअसल, जी-20 की अध्यक्षता कर रहा भारत आने वाले समय में श्रीनगर और लेह में बैठक आयोजित कर रहा है।
माना जा रहा है कि इस कदम के जरिए भारत चीन और पाकिस्तान को कड़ा संदेश दे रहा है।
‘द हिंदू’ की रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारियों ने कहा कि यूथ-20 शिखर सम्मेलन या वाई-20 की बैठक 26 से 28 अप्रैल तक लेह में होगी, जिसमें लगभग हर जी-20 देश के लगभग 80 प्रतिनिधि शामिल होंगे।
बता दें कि चीन ने पिछले दिनों अरुणाचल प्रदेश में जी-20 की बैठक का बहिष्कार किया था, जिसकी वजह से माना जा रहा है कि इस बार भी वह लेह में होने वाली बैठक से दूरी बनाकर ही रखेगा।
इसके अलावा, 22 से 24 मई के बीच श्रीनगर में होने वाली जी-20 टूरिज्म मीटिंग से भी दूर रह सकता है।
जी-20 मीटिंग से पाकिस्तान को भी लगी मिर्ची
श्रीनगर में मई महीने में होने वाली जी-20 की टूरिज्म वर्किंग ग्रुप की मीटिंग को लेकर पाकिस्तान को भी मिर्ची लगी है।
भारत के फैसले पर आपत्ति जताते हुए पाकिस्तान ने मंगलवार को कहा कि भारत अपने ‘सेल्फ सर्विंग एजेंडे’ को आगे बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समूह की सदस्यता का ‘शोषण’ कर रहा है।
हालांकि, विदेश मंत्रालय की ओर से पाकिस्तान के बयान पर तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। दोनों देशों के बीच संबंध तनावपूर्ण हैं।
जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद पाकिस्तान और चीन ने इस कदम की आलोचना की थी।
श्रीनगर में जी20 की बैठक पर आपत्ति जताने के अलावा, पाकिस्तान ने अपने बयान में लेह में युवा मामलों (वाई20) पर एक सलाहकार मंच की दो अन्य बैठकों के कार्यक्रम का भी विरोध किया और उन्हें समान रूप से निराशाजनक बजाया।
ओआईसी देशों पर होंगी सबकी नजरें
लोगों की नजरें ओआईसी देशों पर टिकी हुई हैं। इस्लामिक देशों की संस्था ओआईसी के सदस्य तुर्की, इंडोनेशिया और सऊदी अरब भी जी-20 में शामिल हैं।
ओआईसी ने भी जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने की आलोचना की थी। ऐसे में इन तीन देशों पर सबकी नजरें हैं कि ये देश क्या लेह और श्रीनगर में होने वाली बैठक में शामिल होंगे या नहीं।
राजनयिक सूत्रों ने कहा कि अगले महीने होने वाले राष्ट्रपति और संसदीय चुनावों को देखते हुए तुर्की अधिकारियों को भेजने में असमर्थ हो सकता है, जबकि इंडोनेशिया से प्रतिक्रिया का इंतजार है।