भले ही मार्च माह में मौसम ने एकाएक करवट बदलकर गर्मी से राहत दे दी हो।
लेकिन अभी भी देश के अलग-अलग राज्यों में गर्मी (Power crisis in Summer) के तेवर देखे जा सकते हैं। आने वाले समय में इसके और ज्यादा तेवर दिखाए जाने का अनुमान है।
गर्मी के बढ़ने के साथ बिजली की डिमांड में भी बढ़ोतरी होने का अनुमान है। इसको लेकर बिजली उत्पादन की पर्याप्त क्षमता और उसके प्रबंधन की फुलप्रूफ तैयारी भी की जा रही है। नेशनल लोड डिस्पैच सेंटर (NLDC) ने भी अनुमान जताया है कि आने वाले अप्रैल माह से ही बिजली की गंभीर कमी से जूझना पड़ सकता है।
इस साल बिजली की अनुमानित पीक डिमांड में 8 फीसदी ज्यादा बढ़ोतरी रिकॉर्ड किए जाने का अनुमान है। इस साल देश में बिजली की अनुमानित पीक डिमांड 230 GW (गीगा वाट) में बढ़ोतरी रिकॉर्ड होने के अनुमान के चलते समर एक्शन प्लान पर काम करने की तैयारी की जा रही है।
भारत के बिजली ग्रिड गर्मी में संकट से निपटने की तैयारी में जुट गए है। ग्रिड सिस्टम ऑपरेटर अप्रैल में 18 ‘अलर्ट डेज’ पर काम करने की तैयारी में हैं। पिछले साल की सर्वाधिक मांग की बात करें तो यह जुलाई में 211।6 गीगावॉट दर्ज की गई थी। लेकिन इस साल पीक डिमांड 230 GW (गीगा वाट) होने का अनुमान जताया गया है।
संकट से निपटने के लिए अभी से ही बड़ी तैयारियां
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक इस बीच देखा जाए तो गर्मी से निपटने के लिए और किसी भी संकट से बचाने के लिए अभी से ही बड़ी तैयारियां की जा रही हैं।
विद्युत अधिनियम का हवाला देकर पारंपरिक थर्मल पावर प्लांट के मेंटेनेंस प्रोग्राम को अगले तीन माह के लिए टाल देने के आदेश दिए गए हैं।
इन सभी प्लांट्स को 16 मार्च से 30 जून तक फुल कैपेसिटी के साथ बिजली का उत्पादन करने के आदेश दिए गए हैं। आयातित कोयले से बिजली उत्पादन करने वाले इन पावर प्लांट्स को सख्त आदेश जारी किए गए हैं।
विद्युत अधिनियम की धारा 11 में इस तरह का प्रावधान है कि सरकार की ओर से असाधारण परिस्थितियों में, किसी उत्पादन कंपनी को किसी भी स्टेशन को संचालित करने और बनाए रखने के लिए निर्देशित कर सकती है।
राज्यों के बिजली नहीं खरीदने पर मार्केट में पॉवर सेल कर सकेंगे डेवलपर्स
इस बीच देखा जाए तो राज्य वितरण कंपनियों का इन संयंत्रों के साथ बिजली खरीद समझौता (पीपीए) है। इस समझौते के तहत उनको उत्पन्न बिजली के लिए इनकार करने का पहला अधिकार भी मिला है। अगर यह राज्य उत्पन्न बिजली नहीं खरीदना चुनते हैं, तो डेवलपर्स इस बिजली को बाजार में बेच सकते हैं।
एनटीपीसी ने भी अपने प्लांट्स के लिए जारी किए आदेश
इसके अलावा, राज्य के स्वामित्व वाली एनटीपीसी लिमिटेड के करीब 5,000 मेगावाट गैस-आधारित उत्पादन (1,000 मेगावाट 1GW के बराबर है) को चालू करने के आदेश जारी किए गए हैं, और इन स्टेशनों से उत्पन्न बिजली पीपीए धारकों को बेची जानी है। वहीं बाकी उत्पादित बिजली को मार्केट में बेचा जा सकेगा।
अधिकारियों ने संकेत दिया कि बिजली संकट से निपटने के लिए 18 दिन बेहद ही खास माने जाते हैं। एनटीपीसी (NTPC) की बिजली व्यापार शाखा एनवीवीएन को गैस बिजली आपूर्तिकर्ताओं को अनुबंधित करने और पूल-इन करने के लिए कहा गया है।
माना जाता है कि दक्षिण के मुकाबले उत्तरी क्षेत्र में जलाशय स्तर (reservoir levels) अच्छा है। दक्षिण में जल विद्युत उत्पादन अपेक्षित स्तर से नीचे रहने की संभावना है। इसके लिए दक्षिण क्षेत्र में अप्रैल माह में शाम के वक्त बिजली के उत्पादन पर बल देने का निर्देश दिया गया है।
एडवाइजरी के मुताबिक घरेलू आपूर्ति की किसी भी संभावित कमी से निपटने के लिए पारंपरिक थर्मल संयंत्रों में आयातित कोयले का 6 प्रतिशत सम्मिश्रण सुनिश्चित करने की सलाह भी दी गई है।
देश में लिथियम भंडारण की कमी
इस बीच देखा जाए तो देश में लिथियम भंडारण की कमी है। सरकार ने इस साल के बजट में 4000 मेगावाट लिथियम-आयन बैटरी स्टोरेज की व्यवहार्यता अनुदान प्रस्तावित भी किया है।
माना जाता है कि इस समय बड़े पैमाने पर भंडारण के लिए लिथियम के अलावा कोई व्यवहार्य विकल्प नहीं है। ऊर्जा भंडारण के लिए ऑफ-स्ट्रीम पंप स्टोरेज एकमात्र व्यवहार्य विकल्प है, लेकिन इन प्रोजेक्ट्स के लिए साइट चयन में काफी वक्त लगता है।
बताया जाता है कि कोविड महामारी के बाद खुली अर्थव्यवस्था ने कई बड़ी चुनौतियों को भी जन्म दिया है। हालांकि हर साल गर्मियों में बिजली की समस्या से जूझा जाता रहा है। लेकिन अब कई और मामले तेजी से बढ़े हैं जिससे इस दिशा में और समस्या बढ़ी है। देश की मौजूदा बिजली उत्पादन क्षमता 410GW है।
कोयला आधारित 200 मेगावाट प्लांट 25 साल पुराने
इस बीच देखा जाए तो 200 मेगावाट तक बिजली उत्पादन करने वाले अधिकांश कोयले से संचालित थर्मल पावर प्लांट 25 साल से ज्यादा पुराने हैं और पुरानी तकनीक पर ही ऑपरेट किए जा रहे हैं।
इन पर ज्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता है। वहीं, चीन जोकि एक दशक से अक्षय ऊर्जा का चीयरलीडर रहा है उसने भी 2015 के बाद सबसे अधिक कोयले से चलने वाले नए प्लांट्स को मंजूरी दी है।
बावजूद इसके कि आसन्न जलवायु संकट को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह स्वीकार्य नहीं हो सकता है। भारत भी अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है।
इस बीच देखा जाए तो बिजली की डिमांड को पूरा करने और उसकी कमी से निपटने के लिए दो दीर्घकालिक फैसले भी लिए गए थे। लेकिन अब ऊर्जा मंत्रालय नई तापीय क्षमता प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है।
इससे बिजली की मांग और आपूर्ति दोनों पर बड़ा असर पड़ेगा। नवीकरणीय ऊर्जा पर भी विशेष बल दिया जा रहा है जिसके चलते अब पूर्व के दो फैसले में बड़ा बदलाव भी किया जा रहा है।