इस साल की शुरुआत के लगभग दो महीने में ही भारत में 30 बाघों की मौत (Tiger Deaths) दर्ज की जा चुकी है।
जबकि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority-NTCA) के अधिकारियों का कहना है कि बाघों की मौत की ये संख्या किसी संकट की चेतावनी का कारण नहीं है।
क्योंकि आमतौर पर जनवरी और मार्च के बीच बाघों की मौत बढ़ जाती है। अब तक कान्हा, पन्ना, रणथंभौर, पेंच, कॉर्बेट, सतपुड़ा, ओरंग, काजीरंगा और सत्यमंगलम रिजर्व से बाघों की मौत की सूचना मिली है। बाघों की इन 30 मौतों में से 16 मौतें रिजर्व के बाहर बताई गई हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक अब तक मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा 9 बाघों की मौत दर्ज की गई है, इसके बाद महाराष्ट्र में 7 बाघों की मौत हुई है।
मरने वाले बाघों में एक नन्हा शावक भी शामिल है। एनटीसीए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि एमपी और महाराष्ट्र में बाघों की मौत ज्यादा होने का कारण ये है कि उनके पास बाघों की बड़ी आबादी है।
इस साल हुई मौतों की संख्या को लेकर कुछ भी चिंताजनक नहीं है। बाघों की आबादी में बढ़ोतरी के साथ स्वाभाविक रूप से मरने वालों की संख्या भी बढ़ेगी।
एनटीसीए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आंकड़ों से पता चलता है कि किसी भी साल में जनवरी और मार्च के बीच सबसे ज्यादा बाघों की मौत होती है।
यह वह समय होता है जब वे अपना इलाका छोड़कर बाहर निकल जाते हैं। इसलिए बाघों के बीच संघर्ष होता है। बाघों के बीच इलाकों को लेकर संघर्ष भी हैं।
देश में बाघों की एक अच्छी आबादी के साथ, सालाना 200 बाघों की मौत कोई अप्रिय बात नहीं है। अधिकारी ने कहा कि देश में बाघों की आबादी सालाना छह फीसदी की दर से बढ़ रही है।
बाघों की मृत्यु दर को संदर्भ से हटाकर देखना एक गलती है। ये ध्यान रखना होगा कि बाघों की संख्या भी बढ़ रही है। एक बाघ का औसत जीवन काल 12 साल ही होता है।