आर्थिक तंगी में फंसे पाकिस्तान की इन दिनों सबसे बड़ी उम्मीद आईएमएफ है।
हालांकि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने कर्ज के लिए उसकी शर्तों को बहुत कड़ा बताया है।
इसके बावजूद वह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की सभी मांगों को मानने के लिए तैयार नजर आ रहे हैं। अगर बात करें पाकिस्तान की तो वह अब तक 23 बार आईएमएफ के सामने हाथ फैला चुका है।
सवाल उठता है कि आईएमएफ आखिर है क्या जो आर्थिक संकट में फंसे देशों का मददगार बनकर उभरता है।
पाकिस्तान को 23 बार मदद
जबर्दस्त आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान की आईएमएफ के साथ बातचीत चल रही है। बता दें कि पाकिस्तान 23 बार आईएमएफ से मदद मांग चुका है।
पहली बार दिसंबर 1958 में उसे ढाई करोड़ डॉलर की मदद मिली थी।
अगर राष्ट्राध्यक्षों के हिसाब से देखें तो जनरल अयूब के वक्त तीन, ज़ुल्फिकार अली भुट्टो के समय चार, जनरल जियाउल हक के समय दो, नवाज शरीफ के पहली बार पीएम रहते एक, बेनजीर भुट्टो के दूसरी बार पीएम बनने के समय तीन, नवाज शरीफ के दूसरी बार पीएम बनने वक्त दो, परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल में दो बार उसे आईएमएफ की मदद मिली है। बाद की सरकारों ने भी यह सिलसिला कायम रखा।
साल 1944 में बनाया गया था आईएमएफ
आईएमएफ यानी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना हुई थी साल 1944 में। फिलहाल आईएमएफ की मुखिया क्रिस्टलीना जॉर्जिवा हैं।
वह साल 2019 से इस वैश्विक संस्था के मैनेजिंग डायरेक्टर की जिम्मेदारी संभाल रही हैं। इसके कुल सदस्य देशों की संख्या 190 है।
आईएमएफ का सदस्य बनने के लिए कुछ खास शर्तें होती हैं और एक खास रकम देकर सब्सक्रिप्शन लेना होता है।
इसकी सदस्यता शर्तों को पूरा करके कोई भी देश आईएमएफ में शामिल हो सकता है। जहां तक पाकिस्तान की बात है, साल 1950 में आईएमएफ का मेंबर बना था।
आईएमएफ के पास इतना पैसा
आईएमएफ के पास कुल एक ट्रिलियन डॉलर की रकम है। इस रकम को जरूरत के मुताबिक अपने सदस्य देशों को सस्ती दर पर कर्ज के तौर पर दे सकता है।
अगर बात करें तो अभी तक अर्जेंटीना वह देश है, जिसने आईएमएफ से सबसे बड़ा कर्ज लिया है। यह रकम थी 57 अरब डॉलर की और ऐसा हुआ था साल 2018 में।
इकॉनमिक क्राइसिस में फंसे देशों का आखिरी और सबसे बड़ा सहारा आईएमएफ को ही माना जाता है। साल 2002 में ब्राजील ने डिफॉल्ट होने के बाद आईएमएफ से कर्ज लिया था।
हालांकि बाद में उसने पूरा कर्ज चुका भी दिया था।