जजों की नियुक्ति को लेकर केंद्र और सुप्रीम कोर्ट (SC) में टकराव क्यों? इन देशों में कितनी अलग है नियुक्ति प्रक्रिया…

सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम और केंद्र सरकार के बीच जजों की नियुक्त के मुद्दे पर टकराव देखने को मिल रहा है।

साल 1993 के बाद से देश में कोलेजियम सिस्टम शुरू हुआ था। उससे पहले चीफ जस्टिस और दो अन्य सीनियर जजों की सलाह पर राष्ट्रपति नियुक्ति करते थे।

इसके बाद कोलेजियम सिस्टम आया और राष्ट्रपति की सिफारिश पर सुप्रीम कोर्ट से ही जजों के ट्रांसफर और नियुक्ति का फैसला होने लगा। 

साफ तौर पर कहें तो न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच मतभेद के बाद ही कोलेजियम सिस्टम शुरू हुआ।

कोलेजियम सिस्टम का जिक्र भारत के संविधान में कहीं नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के ही तीन फैसलों से इसकी शुरुआत हुई जिसे थ्री जजेज केस के नाम से जाना जाता है। 

कैसे होती है सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति
संविधान के अनुच्छेद 124 (2) जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया का जिक्र है । इसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति राष्ट्रपति करेंगे।

यह नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों से सलाह लेकर किए जाएंगे। चीफ जस्टिस और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को छोड़कर अन्य जजों की नियुक्ति इसी प्रक्रिया से होगी।

कोलेजियम सिस्टम के अंतरगत सीजेआई और चार सीनियर मोस्ट जज सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में नियुक्ति के लिए प्रस्ताव राष्ट्रपति के पास भेजते हैं। हालांकि अब कोलेजियम में चार की जगह 6 जज होते हैं।

क्योंकि इन चार जजों के अलावा जो सीजेआई बनने वाला हो उसका भी इसमें रहना जरूरी है। सीजेआई चंद्रचूड़ के बाद जस्टिस संजीव खन्ना सीजेआई बनेंगे इसलिए वह भी कोलेजियम में शामिल हैं। 

कोलेजियम की तरफ से सिफारिश दो तरह की हो सकती हैं। एक तो हाई कोर्ट के जजों को सुप्रीम कोर्ट भेजने की और दूसरा सीनियर वकील को सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर नियुक्त करने की।

सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए कोलेजियम में पांच जज होते थे जो कि अब 6 हैं। इशी तरह हाई कोर्ट में भी कोलेजियम होता है जिसके हेड चीफ जस्टिस होते हैं।

उनके अलावा हाई कोर्ट के दो और सीनियर मोस्ट जज होते हैं। हाई कोर्ट कोलेजियम नियुक्तियों की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम के पास भेजता है। 


हाई कोर्ट में कैसे होती है जजों की नियुक्ति
हाई कोर्ट में जजों कि नियुक्ति के लिए हाई कोर्ट का कोलेजियम राज्य सरकार को सिफारिश भेजता है। इसके बाद राज्य सरकार इन नामों को केंद्र के पास भेजती है। केंद्र इसे इंटेलिजेंस ब्यूरो को जांच के लिए देता है। आईबी अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को भेजता है।

सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम आईबी की रिपोर्ट को देखकर केंद्र को नियुक्ति के लिए सिफारिश करता है। केंद्र या तो नियुक्ति को स्वीकार कर लेता है या फिर पुनर्विचार के लिए कोलेजियम को भेज देता है।

कोलेजियम के पास फिर से वही नाम भेजने का अधिकार है। इसके बाद केंद्र को उनकी नियुक्ति करनी होती है।

हालांकि इन नियुक्तियों के लिए कोई समय नहीं निर्धारित है। सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए भी ऐसी ही प्रक्रिया का पालन करना होता है। 

दूसरे देशों में कैसे होती है जजों की नियुक्ति
अणेरिका की बात करें तो यहां फेडरल कोर्ट के जजों की नियुक्ति राष्ट्रपति अपने मंत्रियों और सांसदों से सलाह करके करते हैं।

अमेरिकन बार असोसिएशन द्वारा इन नामों की सिफारिश की जाती है और सीनेट जूडिशरी कमिटी इस पर विचार करती है।

अमेरिका में जजों के लिए कोई रिटायरमेंट एज नहीं है। वहीं यूके की बात करें तो यहां एक स्वायत्त संस्था है जिसे जूडिशल अपॉइनमेंट कमिशन के नाम से जाना जाता है।

वह  जजों की नियुक्ति का काम देखती है। इसमें 15 सदस्य होते हैं जिनमें से तीन जज और 12 सदस्य खुली स्पर्धा से चुने जाते हैं। 

फ्रांस में हायर काउंसिल ऑफ जूडिशरी के प्रस्ताव पर जजों की नियुक्ति होती है। तीन साल के लिए जज की नियुक्ति होती है वहीं कानून मंत्रालय की सिफारिश पर कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है।

साउथ अफ्रीका में 23 सदस्यीय जेएससी राष्ट्रपति को सिफारिश भेजता है। वहीं लैटिन अमेरिकी देशों में राष्ट्रपति ही जजों कि नियुक्ति करते हैं हालांकि इसके लिए संबंधित मंत्री से सलाह लेनी होती है। 

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