आजादी मिलने से पहले ही ‘हिन्दुस्तान’ की सरकार, जेल की भी की थी यात्रा, पढ़ें नेताजी के ‘पराक्रम’ की कहानी…

ब्रिटिश हुकूमत से आजादी पाने के लिए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कई नायकों ने हिस्सा लिया था।

लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhas Chandra Bose) वैसा नाम है, जो स्वतंत्रता प्राप्त करने की लड़ाई की पंक्ती में सबसे आगे नजर आते हैं।

आज उनकी 126वी जयंती है। आज ही के दिन साल 1897 में उड़ीसा के कटक में सुभाष चंद्र बोस का जन्म(Subhas Chandra Bose Birthday) हुआ था।

इस दिन को यानी 23 जनवरी को भारत सरकार ने साल 2021 में पराक्रम दिवस (Parakram Diwas) के तौर पर मनाने का फैसला किया था।

नेताजी वैसे नेताओं में से एक थे, जिन्होंने भारत के लिए पूर्ण स्वारज का सपना देखा था। उन्होंने कई आंदोलन का नेतृत्व किया, इस कारण वह जेल भी गए।

उनके इरादों ने अंग्रेजी हुकूमत की नींव को हिलाकर रख दिया था। आजादी के 4 साल पहले ही बोस ने हिन्दुस्तान की पहली सरकार का गठन कर दिया था।

बोस के इन क्रांतिकारी इरादों ने ही अंग्रेजी सरकार की नींद उड़ा रखी थी।

आजादी से पहले भारत की पहली सरकार का गठन
बताया जाता है कि 21 अक्टूबर 1943 का दिन भारत के लिए इसलिए बहुत स्पेशल दिन कहा जा सकता है क्योंकि इस दिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में आजाद भारत की अस्थायी सरकार बनाई थी।

इस सरकार के गठन के बाद उन्होंने फिर नए सिरे से आजाद हिंद फौज को खड़ा किया। इसके बाद उनके इस इरादों से साफ हो गया कि वह भारत में अंग्रेजी सरकार के अस्तित्व को नहीं मानते हैं और भारत के लोग अपने लिए सरकार बनाने और चलाने के लिए तैयार हैं और सक्षम भी है।

आजाद हिंद सरकार के बनने से स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई उर्जा मिली।

मालूम हो कि 4 जुलाई 1943 को सिंगापुर के कैथे भवन में हुए समारोह में रासबिहारी बोस ने आजाद हिंद फौज की कमान सुभाष चंद्र बोस के हाथों में सौंप दी थी।

इसके बाद ही 21 अक्टूबर 1943 को आजाद हिंद सरकार की स्थापना हुई थी। जापान ने सुभाष चंद्र बोस को समर्थन देते हुए आजाद हिंद सरकार को मान्यता दे दी थी।

इसके साथ ही जापान ने अंडमान और निकोबार द्वीप आजाद हिंद सरकार को दे दिए थे।

इस काम के लिए गए थे जेल
नेताजी उस दौर में लंदन में ICS की नौकरी कर रहे थे। अपनी नौकरी छोड़ वह लंदन से भारत लौट गए। इसके बाद उनकी मुलाकात देशबंधु चितरंजन दास से हुई।

चितरंजन दास वह व्यक्ति थे जिन्होंने उन दिनों फॉरवर्ड नाम से एक अंग्रेजी अखबार से अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंक रखा था।

मुलाकात के बाद चितरंजन दास ने उन्हें फॉरवर्ड अखबार का संपादक बना दिया। इसके बाद उन्होंने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ अपनी कलम जोरदार तरीके से चलाई।

और सरकार के खिलाफ माहौल बनाना शुरू कर दिया। इसी कारण उन्हें साल 1921 में छह महीने की जेल की सजा हुई।

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