पराक्रम दिवसः नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नहीं बना था मृत्यु प्रमाणपत्र, क्यों पहेली बन गई उनकी मौत…

देश को स्वाधीनता दिलाने के लिए सेना खड़ी कर देने वाले महायोद्धा नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिवस को पराक्रम दिवस के  रूप में मनाया जाता है।

उनका जीवन जितना अद्भुत शौर्य से भरा था, उनकी मौत उतनी ही रहस्यमय बन गई बताया जाता है कि 18 अगस्त, 1945 को ताइपे के लिए उड़ान भरते समय उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।

हालांकि इस बात को सभी लोग नहीं मानते हैं। यहां तक कि आईएनए ने भी उनके निधन पर विश्वास नहीं किया था।

आईएनए की तरफ से कहा गया था कि नेताजी को अगर अस्पताल ले जाया गया तो उनका मृत्यु प्रमाणपत्र या फिर कोई मृत नेताजी की तस्वीर क्यों नहीं जारी की गई। 

बताया गया था कि निधन से पहले नेताजी कोमा में चले गए थे। जापानी की इंपीरियल सेना के पायलट ने भी दावा किया था कि सरेंडर के बाद नेताजी सुभाष का विमान हादसे का शइकार हो गया था।

बताया गया कि लेफ्टिनेंट जनरल सुनामासा शिदेई और बोस एएसएसआर के प्रतिनिधियों से बात करने के लिए वह डेरेन जा रहे थे।

वह चाहते थे कि भारत की आजादी के लिए सरेंडर के बाद भी संघर्ष जारी रहे और सोवियत संघ भी इसमें साथ दे।

बोस के समर्थक मानते थे कि जब बोस के निधन का समय बताया जा रहा है उससे पहले कोई विमान हादसा हुआ ही नहीं था।

हालांकि उनके साथ उड़ान फरने वाले कर्नल हबीब-उर-रहमान ने बाद में जांच आयोग को बयान दिया था।

बताया जाता है कि नेताजी की अस्थियां जापान के रंकोज मंदिर मं रखवा दी गई थीं। नेताजी का जीवन असाधारण था।

उनकी रणनीति ने ब्रिटिश साम्राज्य को हिलाकर रख दिया था। नेताजी के निधन के बाद भी उनके जिंदा रहने की अफवाहें सामने आती रहती थीं।

हालांकि कभी इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी कि उनकी मौत कैसे हुई थी या फिर वह जिंदा हैं। 

पहले ऐसी कहानियां भी सामने आती थीं कि नेताजी कि बंगाल के जंगल में तपस्या करने चले गए हैं।

हालांकि कई ऐसी रिपोर्ट्स आई थीं जिनमें दावा किया गया था कि विमान दुर्घटना में ही उनकी मौत हुई थी।

1946 में फिगेस रिपोर्ट में कहा गया था कि ताइहोकू एयरपोर्ट के पास विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ था और सुभाष इसी में सवार थे। इसके बाद पास के ही अस्पताल में उनका निधन हुआ।

1956 में भारत सरकार ने शहनवाज खान की अध्यक्षता में समिति बनाई। इस समिति ने 67 गवाों के बयान लिए।

उन लोगों के भी बयान लिए गए थे जो कि उस दुर्घटना में बच गए थे। अंतिम समय में  बोस का इलाज करने वाले जापान के सर्जन और हबीब भी इसमें शामिल थे।

इस समिति ने निष्कर्ष यही निकाला था कि 1945 में नेताजी का निधन हो गया था। हालांकि नेताजी के भाई सुरेश चंद्र बोस ने रिपोर्ट पर साइन नहीं किए थे और कहा गया था कि कुछ अहम सबूतों को नजरअंदाज किया गया है।

इसके बाद एक और रिपोर्ट आई जिसमें कहा गया था कि अगर गवाहों के बयानों में विसंगति है तो गवाही खारिज कर देनी चाहिए। सुरेशचंद्र बोस का कहना था कि उनके भाई की मौत नहीं हुई थी। 

अयोध्या में रहने वाले गुमनामी बाबा को लेकर भी तरह-तरह की बातें कही जाती थीं। कहा जाता था कि वह सुभाष चंद्र बोस ही थे।

उनके बारे में जांच करने के लिए एक कमीशन भी बनाया गया था। 2016 में जस्टिस विष्णु सहाय आयोग बनाया गया था।

बताया जाता है कि 1985 में गुमनामी बाबा के निधन के बाद उनके कमरे से एक बक्सा मिला था ऐसी चीजें थीं जो कि सुभाष चंद्र बोस से मिलती थीं। गुमनाबी बाबा अंग्रेजी और बंगाली भाषा जानते थे और इन भाषाओं की किताबें भी उनके पास से मिली थीं।

इसके अलावा बक्से में से गोल फ्रेम के चश्मे, आजाद हिंद फौज की वर्दी, नेताजी के माता-पिता की तस्वीर समेत कई दस्तावेज मिले थे। अनुमान यही लगाया जाता है कि उनका संबंध नेताजी से था। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

× Whatsaap