तालिबान की इस्लाम के बारे में रूढ़िवादी धारणा पाकिस्तान के लिए बड़ी चुनौती पेश कर रही है।
एक तरफ जहां इस्लामाबाद स्वतंत्रता और मानवाधिकार मूल्यों के साथ खड़ा होता नजर आता है, वहीं पाकिस्तानी तालिबान की विचारधारा इसके एकदम विपरीत है।
मुहम्मद अमीर राणा ने डॉन में छपे अपने लेख में ये बातें कही हैं। लेखक के अनुसार, तालिबान का धार्मिक रूप से प्रेरित हिंसा और घृणा में विश्वास है, जिसने समाज की नींव को कमजोर कर दिया है।
रूढ़िवादिता के चलते ही तालिबान शासन की धार्मिक हठधर्मिता बनी हुई है और इससे पाकिस्तानी समाज में वैचारिक तौर पर परेशानी देखने को मिल रही है।
ऐसे में पाकिस्तान की सरकार तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और तालिबान के अन्य सहयोगियों को लेकर अधिक चिंतित दिखाई देती है।
लेखक ने अपने लेख में कहा, ‘तालिबान और उससे जुड़े आतंकवादी समूह पाकिस्तान के रणनीतिक समुदाय की उस धारणा को टेस्ट कर रहे हैं, जिसके तहत माना जाता है कि देश में मदरसों के साथ तालिबान का जुड़ाव राज्य की राजनीतिक राजधानी है।’
प्रतिबंधित टीटीपी के प्रमुख नूर वली महसूद ने हाल ही में कहा कि उनका गुट देश में जिहाद छेड़ रहा है। उन्होंने खुद यह पुष्टि की कि पाकिस्तानी मदरसों के टीचर इसके प्रचार-प्रसार में लगे हुए हैं।
ध्यान रहे कि पाकिस्तान सहित दुनिया में कई मुस्लिम बहुल देश हैं, जो धर्म पर तालिबान के विचारों को लेकर चिंतित हैं। इनमें से अधिकांश स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के आधुनिक मूल्यों के साथ खड़े होते रहे हैं।
यही कारण है कि वे खुले तौर पर अफगान तालिबान की नीतियों की निंदा करते हैं। इस बीच पाकिस्तान तालिबान भी तो अफगान तालिबानियों के नक्शे-कदम पर चलता नजर आ रहा है, जिसे लेकर चिंता बढ़ती जा रही है।
नए साल की शुरुआत में ही टीटीपी ने धमकी दी थी कि अगर सत्तारूढ़ गठबंधन के 2 प्रमुख राजनीतिक दलों ने आतंकवादियों के खिलाफ सख्त कदम का समर्थन जारी रखा तो वे पार्टी के शीर्ष नेताओं को निशाना बनाएंगे।
टीटीपी को अल-कायदा का करीबी माना जाता है। उसने प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) और विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो-जरदारी के नेतृत्व वाली पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के सत्तारूढ़ गठबंधन को चेतावनी दी थी।
टीटीपी ने चेतावनी दी कि आम जनता को ऐसे प्रमुख लोगों के करीब जाने से बचना चाहिए। इसने दावा किया कि यह गुट पाकिस्तान में केवल जिहाद चला रहा है और हमारा निशाना देश पर कब्जा कर रही सुरक्षा एजेंसियां हैं।
इसने विशेष रूप से विदेश मंत्री बिलावल को चेतावनी दी, जिनकी मां पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो 2007 में आतंकवादी हमले में मारी गई थीं।
बयान में कहा गया, ‘हालांकि बिलावल अभी बच्चा है, इस बेचारे ने अभी तक नहीं देखा है कि युद्ध की स्थिति क्या होती है।’
पाकिस्तान को अफगान तालिबान से थी उम्मीद
पाकिस्तान को उम्मीद थी कि सत्ता में आने के बाद अफगान तालिबान टीटीपी के गुर्गों को निकालकर पाक के खिलाफ अपनी जमीन का इस्तेमाल करना बंद कर देगा, लेकिन मालूम होता है कि उसने इस्लामाबाद के साथ रिश्ते खराब होने की परवाह किए बगैर ऐसा करना बंद नहीं किया है।
टीटीपी पर पाकिस्तान में कई हमलों को अंजाम देने के आरोप लगे हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई पर 2012 में टीटीपी ने ही हमला किया था।
इस बीच टीटीपी प्रमुख मुफ्ती नूर वली महसूद ने कहा कि उनका संगठन पाकिस्तान सरकार के साथ संघर्ष विराम समझौते के लिए अब भी तैयार है।
पिछले साल नवंबर में टीटीपी ने जून 2022 में सरकार के साथ हुए अनिश्चितकालीन संघर्ष विराम समझौते को रद्द कर दिया था और अपने आतंकवादियों को सुरक्षाबलों पर हमले करने का हुक्म दिया था।
बहरहाल, इस खूंखार संगठन ने कहा कि उसने सरकार के साथ संघर्ष विराम समझौता खत्म नहीं किया है।
टीटीपी ने इसे दिया जिहाद का नाम
वीडियो संदेश में महसूद ने कहा कि अगर पाकिस्तान के धार्मिक विद्वानों को लगता है कि हमारी जिहाद की दिशा गलत है तो उनका संगठन इन विद्वानों द्वारा मार्गदर्शन किए जाने के लिए तैयार है।
टीटीपी प्रमुख ने कहा, ‘अगर आपको हमारे द्वारा छेड़े गए जिहाद में कोई समस्या नजर आती है, अगर आपको लगता है कि हमने अपनी दिशा बदल दी है, हम भटक गए हैं, तो आपसे हमारा मार्गदर्शन करने का अनुरोध किया जाता है। हम खुशी-खुशी अपनी दलीलें सुनने के लिए हमेशा तैयार हैं।’