केंद्र सरकार ने पर्यावरणविदों और भूवैज्ञानिकों के उन दावों का खंडन किया है जिसमें उन्होंने कहा था कि नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (NTPC) की सुरंगों के कारण जोशीमठ में संकट गहरा गया है।
उत्तराखंड सरकार को भेजे जाने वाले पत्र में केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने कहा है कि प्राकृतिक जल निकासी, कभी-कभी भारी वर्षा, समय-समय पर लगने वाले भूकंप के झटके और निर्माण गतिविधियां इस संकट के कारण बन सकते हैं। वहीं, एनटीपीसी का कहना है कि जोशीमठ के नीचे से कोई सुरंग नहीं गुजर रही है।
पत्र का ड्राफ्ट तैयार हो चुका है। इसमें केंद्र सरकार ने कहा है, ”सुरंग जोशीमठ शहर की बाहरी सीमा से लगभग 1.1 किमी दूरी पर है। इस इलाके में सुरंग का निर्माण टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) के माध्यम से किया गया है। इससे आसपास के चट्टानों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है।” नाम नहीं छापने की शर्त पर पर्यावरण मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने शुक्रवार को कहा, “एनटीपीसी जलविद्युत परियोजना के साथ जोशीमठ संकट के संबंध को अब खारिज कर दिया गया है।”
उन्होंने कहा, “पत्र अभी तक नहीं भेजा गया है। लेकिन यह सही है कि हमने पत्र का मसौदा तैयार किया है। इसे पहले गृह मंत्रालय के साथ साझा किया जाएगा। इसके बाद इसे उत्तराखंड सरकार को भेजा जाएगा।”
पत्र में लिखा है, ”जोशीमठ में जमीन का धंसना बहुत पुराना मुद्दा है। 1976 में भी देखा गया था। उत्तर प्रदेश की सरकार ने इस मामले पर एक कमेटी का गठन किया था। इसकी अध्यक्षता गढ़वाल के आयुक्त एमसी मिश्रा ने की थी।”
तपोवन विष्णुगढ़ पनबिजली परियोजना का निर्माण कार्य नवंबर 2006 में एनटीपीसी द्वारा शुरू किया गया था। इस परियोजना में तपोवन में एक कंक्रीट बैराज का निर्माण शामिल था।
परियोजना की हेड रेस टनल (एचआरटी) जोशीमठ कस्बे के नीचे से नहीं गुजर रही है। यह सुरंग जोशीमठ शहर की बाहरी सीमा से लगभग 1.1 किमी की दूरी पर है।
सुरंग के निर्माण के दौरान स्थानीय लोगों के द्वारा भविष्य में सेलोंग क्षेत्र में जल स्तर के सूखने को लेकर चिंता व्यक्त की गई थी। यह इलाका जोशीमठ शहर से लगभग 6 किमी दूर है।
इसके बाद चमोली के डीएम के द्वारा एक समिति का गठन किया गया था।
इसमें नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रॉक मैकेनिक्स, आईआईटी रुड़की, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी और राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग संस्थान, नागपुर जैसे संस्थानों के डायरेक्टर शामिल थे।
समिति ने अगस्त 2010 में यह निष्कर्ष निकाला कि इन परियोजनाओं के कारण होने वाले नुकसान के कोई सबूत नहीं हैं। इसके अलावा पत्र में कहा गया है कि इस इलाके में सुरंग का निर्माण अगस्त 2011 में पूरा हो चुका है।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (WIHG) के निदेशक कलाचंद सेन ने कहा, ”यह कहना जल्दबाजी होगा कि एनटीपीसी परियोजना से जुड़ी सुरंग इस संकट के कारण नहीं हैं। हमें डेटासेट की जांच की जरूरत है। फिलहाल हम लिंक का पूरी तरह से खंडन नहीं कर सकते हैं।”
गंगा आह्वान की सदस्य मल्लिका भनोट ने कहा, “हमें इस बात में कोई संदेह नहीं है कि एनटीपीसी की सुरंग खोदने के कारण जोशीमठ में जमीन के धंसने की घटना अचानक से बढ़ गई है। सुरंग का काम पहले किया गया था, लेकिन सुरंग में मरम्मत का काम फरवरी 2021 में ऋषिगंगा जलप्रलय के बाद शुरू हुआ था। नवंबर 2021 में 14 घरों में दरार की शिकायत की गई थी। अब यह संख्या 678 तक पहुंच गई है।”