एक डॉलर के बराबर 227 रुपये! पाक की इकॉनमी का कैसे बेड़ा गर्क; जीना मुहाल…

भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में आर्थिक संकट लगातार गहरा होता जा रहा है।

पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 8 साल के निचले स्तर पर है और यह आंकड़ा महज 5.6 अरब डॉलर तक सिमट गया है। यही नहीं इस बीच पाकिस्तान की करेंसी में भी भारी गिरावट का दौर जारी है।

हालात यह हैं कि पाकिस्तानी रुपया डॉलर के मुकाबले 227.88 रुपये के लेवल पर पहुंच गया है। यह पहला मौका है, जब पाकिस्तानी रुपये में इतनी बड़ी गिरावट डॉलर के मुकाबले दर्ज की गई है।

पाकिस्तान सरकार आईएमएफ से 6.5 अरब डॉलर के लोन के लिए बात कर रही है, लेकिन वह सफल नहीं हो सकी है।

आर्थिक जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान को लोन न मिलने के चलते ही यह गिरावट दर्ज की गई है। बीते तीन महीनों के अंदर ही पाकिस्तानी रुपये की कीमत में डॉलर के मुकाबले 10 रुपये की गिरावट दर्ज की गई है।

अक्टूबर में डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपये की कीमत 217.79 डॉलर थी। पाकिस्तानी अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक आर्थिक संकट देश में गहरा रहा है और यदि चीन एवं सऊदी अरब से मदद नहीं मिली तो देश दिवालिया होने की कगार पर पहुंच सकता है।

इसकी वजह यह है कि आयात करने को पाकिस्तान के पास 25 दिनों के लिए विदेशी मुद्रा भंडार मौजूद है।

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को समझने वालों का कहना है कि संकट कहीं गहरा है। भले ही इंटरबैंक एक्सचेंज रेट 227.88 रुपये है, लेकिन यह पाकिस्तानी रुपये की वास्तविक कीमत नहीं है।

हालात यह हैं कि ब्लैक मार्केट में एक डॉलर की कीमत 270 रुपये तक पहुंच गई है। फाइनेंस मिनिस्टर इशाक दार ने इंटरबैंक मार्केट में रुपये की कीमत को संभालने के लिए कुछ प्रयास किए हैं, लेकिन अब तक संभव नहीं हो सका है।

लेकिन कर्ज के संकट के चलते पाकिस्तान की इकॉनमी और करेंसी में लगातार गिरावट का दौर जारी है।

हालात यह हैं कि इंपोर्ट के लिए विदेशी मुद्रा भंडार कम है और पाकिस्तान ने अपने उद्योगों के लिए कच्चे माल के आयात को भी घटा दिया है। इसका असर यह हुआ है कि कई औद्योगिक इकाईयों को पाकिस्तान में कच्चे माल की कमी के चलते बंद करना पड़ा है।

पाकिस्तान के आर्थिक संकट का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अगले 6 महीनों में उसे 13 अरब डॉलर का कर्ज चुकाना है।

फिलहाल उसके पास इसके लिए रकम नहीं है। ऐसे में माना जा रहा है कि पाकिस्तान कर्ज चुकाने में एक डिफॉल्टर देश साबित हो सकता है।

ऐसे हालात में पाकिस्तान को आईएमएफ के प्रोग्राम से ही लाइफलाइन मिलने की उम्मीद है। 

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