प्रवीण नांगिया (ज्योतिष सलाहकार):
भारत में हर सप्ताह महीने कोई ना कोई त्योहार व्रत होता ही है।
ऐसे में नए साल में कौन सा त्योहार और व्रत कब पड़ रहा है इसको लेकर लोगों के मन में बहुत उत्सुकता है।
ऐसे में आज हम आपको बताएंगे षटतिला एकादशी व्रत के बारे में। आखिर में इस बार यह फेस्टिवल कब पड़ रहा है।
तो आपको बता दें कि षटतिला का व्रत इस बार 18 जनवरी 2023 को पड़ रहा है। तो चलिए जानते हैं इससे जुड़ी कथा और मान्यता के बारे में आखिर ये त्यौहार क्यों रखा जाता है।
षटतिला एकादशी 2023 मुहूर्त
दृक पंचांग के अनुसार माघ मास के कृष्ण पक्ष की षटतिला एकादशी तिथि 17 जनवरी 2023 दिन मंगलवार को शाम 06 बजकर 05 मिनट से शुरू होगी, अगले दिन 18 जनवरी 2023 को बुधवार को शाम 4 बजकर 03 मिनट पर ये समाप्त होगी। ऐसे में एकादशी व्रत उदया तिथि में 18 जनवरी 2023 को रखा जाएगा।
षटतिला एकादशी व्रत का पारण समय – सुबह 07:14 – सुबह 09: 21 (19 जनवरी 2023)
षटतिला एकादशी 2023
ऐसी मान्यता है कि एकादशी व्रत करने से हजारों वर्ष पुरानी तपस्या से अधिक फल प्राप्त होता है। इसका व्रत करने से आर्थिक तंगी से छुटकारा मिलता है।
इससे व्यक्ति हजारों वर्ष पुण्य को प्राप्त करता है। इस दिन काले तिल का दान करना चाहिए। इस दिन व्रती लोग दिन भर विष्णु भगवान की पूजा अर्चना में खोई रहती हैं।
षटतिला एकादशी का महत्व
पद्मपुराण के अनुसार श्री कृष्ण, युधिष्ठिर को इस एकादशी की महिमा बताते हुए कहते हैं कि हे नृपश्रेष्ठ! माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी ‘षटतिला’ या ‘पापहारिणी’के नाम से विख्यात है,जो समस्त पापों का नाश करती है।
जितना पुण्य कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या और स्वर्ण दान से मिलता है, उससे अधिक फल प्राणी को षटतिला एकादशी का व्रत करने से मिलता है।
यह व्रत परिवार के विकास में सहायक होता है और मृत्यु के बाद व्रती को विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।
षटतिला एकादशी पूजन विधि
जल में तिल और गंगाजल की कुछ बूंदें डालकर स्नान करके पवित्र होकर शुद्धभाव से देवाधिदेव श्री नारायण का स्मरण करें।
रोली, मोली, पीले चन्दन, अक्षत, पीले पुष्प, ऋतुफल, मिष्ठान आदि अर्पित कर धूप-दीप से श्री हरि की आरती उतारकर दीप दान करना चाहिए।
इस दिन ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ‘ का जप और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना बहुत फलदायी है।
इसके बाद श्री कृष्ण नाम का उच्चारण करते हुए भगवान को विधिपूर्वक पूजकर अर्घ्य प्रदान करें। अंत में भगवान की आरती उतारकर पूजन का समापन करें।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। वार्ता 24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।)