बीजेपी के सांसद सुशील मोदी ने सोमवार को राज्यसभा में कहा कि केवल ‘दो जज’ एक साथ बैठ कर समलैंगिक विवाह (Same Gender Marriage) जैसे सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण विषय पर फैसला नहीं ले सकते हैं।
सुशील मोदी ने कहा कि ‘समलैंगिक विवाह’ को कानूनी मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए। ये देश के सांस्कृतिक लोकाचार और मूल्यों के खिलाफ है।
शून्यकाल के दौरान इस मामले को उठाते हुए मोदी ने कहा कि भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ जैसे असंहिताबद्ध या किसी भी संहिताबद्ध वैधानिक कानूनों में समलैंगिक विवाह को न तो मान्यता दी जाती है और न ही स्वीकार किया जाता है।
यह भारत में व्यक्तिगत कानूनों के नाजुक संतुलन को देखते हुए पूर्ण विनाश का कारण बनेगा।
सुशील मोदी ने कहा कि इतने महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दे पर दो न्यायाधीश एक कमरे में बैठकर फैसला नहीं कर सकते।
उन्होंने कहा कि इसके बजाय संसद के साथ-साथ बड़े पैमाने पर समाज में एक बहस होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारत में विवाह को पवित्र माना जाता है और इसका मतलब केवल ‘एक पुरुष और महिला के बीच संबंध’ है।
उन्होंने कहा कि परिवार, बच्चे और उनका पालन-पोषण जैसे मुद्दे विवाह की संस्था से जुड़े हैं। इसके साथ ही गोद लेने, घरेलू हिंसा, तलाक और ससुराल में पत्नी के रहने के अधिकार से भी विवाह से संबंधित हैं।
समान-लिंग विवाह के मुद्दे पर सुशील मोदी ने आरोप लगाया कि कुछ वाम-उदारवादी लोग और एक्टिविस्ट समलैंगिक विवाहों के लिए कानूनी मान्यता हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।
सुशील मोदी ने सरकार से सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह के खिलाफ मजबूती से बहस करने का आग्रह किया।
मोदी का ये बयान सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच के इस बारे में उच्च न्यायालयों में लंबित मुकदमों को स्थानांतरित करने पर विचार करने के लिए सहमत होने के कुछ दिनों बाद आया है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था।
मोदी ने बाद में ‘विशेष उल्लेख’ के दौरान सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए एक कानून लाने का आग्रह किया कि सभी धार्मिक और व्यक्तिगत कानूनों में विवाह की एक समान कानूनी उम्र हो।
साथ ही नाबालिग लड़कियों के विवाह को रोकने के लिए कड़े नियम हों।