शहर के 33 हजार कुत्ते अलग-अलग इलाकों में रोज औसतन 8 लोगों को काटकर जख्मी कर रहे हैं।
इन कुत्तों को पकड़कर आउटर और आस-पास के ग्रामीण इलाकों में छोड़ने का फार्मूला फेल हो चुका है।
नसबंदी के जरिये जनसंख्या वृद्धि रोकने की तरकीब भी नाकाम हो चुकी है।
अब ऐसे कुत्तों को शहर से 15 किमी दूर अटारी में आवारा कुत्तों का डॉग पौंड(बाड़ा)में रखने का प्लान तैयार किया गया है।
यह राज्य का पहला डॉग शेल्टर होम होगा। यहां बीमार कुत्तों को अलग रखकर उनका इलाज किया जाएगा। जनसंख्या वृद्धि को रोकने उनकी नसबंदी भी की जाएगी।
धीरे-धीरे शहर के एक-एक कुत्ते को पकड़कर यहां शिफ्ट किया जाएगा। डॉग पौंड के लिए निगम ने पांच एकड़ जमीन तय कर ली है।
अगले डेढ़-दो माह में बाड़े का काम शुरू कर दिया जाएगा। नगर निगम के डाॅग स्टरलाइजेशन सेंटर और अस्पताल को भी यहां शिफ्ट किया जाएगा, ताकि बीमार कुत्तों को तुरंत इलाज मिल सके। बाड़े में आधुनिक सुविधाओं वाला अस्पताल होगा।
सामाजिक संगठनों और पेट लवर्स यानी ऐसे लोग जो इस तरह के कुत्तों की देखभाल करने आगे आते हैँ, उन के साथ मिलकर निगम इस बाड़े का संचालन करेगा।
मवेशियों के लिए शहर में गौठान और कांजी हाउस इत्यादि हैं। कुत्तों के लिए न तो किसी तरह का शेल्टर होम है और नहीं उन्हें रखने के लिए कोई विशेष सुविधा।
रायपुर ही नहीं, छत्तीसगढ़ या देश के ज्यादातर बड़े शहरों में भी यह सुविधा नहीं है।
उत्तर भारत में पंचकूला, दिल्ली और गुड़गांव जैसे शहरों में इस तरह के पौंड चल रहे हैं। दक्षिण भारत में भी कुछ गिनी-चुनी जगहों पर ऐसे शेल्टर होम हैं।
मध्य भारत में भी ऐसे किसी बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर की जानकारी नहीं है, जहां आवारा कुत्तों को रखा जाता है। छह साल पहले नगर निगम ने इसके बारे में विचार किया था, लेकिन अमल नहीं किया गया।
अब अटारी में जगह चिन्हित करने के अलावा शेल्टर तैयार करने के लिए फाइल तैयार कर ली है। इंफ्रास्ट्रक्चर वर्क के लिए जल्द ही टेंडर जारी होगा। कोशिश की जा रही है कि अगले छह महीने के भीतर डॉग पौंड का संचालन भी शुरू हो जाए।
निगम व सामाजिक संस्थाएं मिलकर करेंगी संचालन
डॉग पौंड का संचालन नगर निगम और शहर के सामाजिक संगठन तथा डॉग लवर्स मिलकर करेंगे। ऐसे आठ से दस लोगों ने इसके लिए निगम को अपनी सहमति भी दे दी है।
बुजुर्गों के लिए काम करने वाली संस्था मनोहर जीवन कल्याण वृद्धाश्रम ने डॉग पौंड के संचालन के लिए अपना प्रेजेंटेशन दे दिया है।
संस्था को संचालित करने वाली तृप्ति लूनिया ने बताया कि कोरोना के समय से हमारी संस्था मवेशियों और कुत्तों को रोटी बनाकर खिलाने का काम कर रही है।
संस्था के सदस्य बीमार कुत्तों का इलाज करने के साथ ही उनकी देखभाल करते हैं। इसमें सबसे बड़ी दिक्कत उन्हें रखने के लिए जगह इत्यादि की सुविधा नहीं है।
उनकी संस्था के पास 104 लोगों की टीम है। वेटनरी डाक्टर्स हैं और बड़ी संख्या में वालिंटियर्स हैं। बीमार कुत्तों को पकड़कर उनका इलाज करने, आवारा घूमने वाले डाग्स को खाना खिलाने इत्यादि का काम उनकी संस्था कर रही है।
इसमें उनकी पारिवारिक सदस्य रानू, शीलू लूनिया तथा अन्य लोग भी साथ हैं।
रोज 50 से ज्यादा को लगता है एंटी रैबीज इंजेक्शन
केवल अंबेडकर अस्तपाल में रोज कुत्ता का काटने के 8 से 10 नए केस आते है जबकि 50 से ज्यादा को एंटी रैबीज इंजेक्शन लगाया जाता है।
निजी अस्पतालोें और सरकारी हेल्थ सेंटरों में भी रोज नए केस आते हैं। निगम अफसरों ने बताया कि डॉग पौंड का संचालन निगम और सामाजिक संगठन मिलकर करेंगे।
इसके अलावा लोगों से भी इसमें सहयोग लिया जाएगा। आमतौर पर होटल्स इत्यादि में बचा हुआ खाना लोग इधर-उधर फेंक देते हैं। लोगों से अपील की जाएगी कि बचा खाना यहां दें।
कोशिश की जाएगी नगर निगम एक गाड़ी भी चलाए, जो खुद जाकर खाना इकट्ठा करे।
इसलिए अग्रेसिव हो रहे हैं कुत्ते| विशेषज्ञों के अनुसार शहर में डाग्स इसलिए अग्रेसिव हो रहे हैं क्योंकि उन्हें खाने-पीने की चीजें नहीं मिल रही हैं। पहले कुत्ते कूड़े में पड़ी चीजें खा लेते थे। मुक्कड़ में लोग खाने-पीने की चीजें फेंक देते थे।
अब बचा हुआ खाना निगम की कचरा गाड़ियों को दे दिया जाता है। बीमार कुत्तों के इलाज के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। गंभीर बीमारी की स्थिति में कुत्ते काटने लगते हैं। शरारती तत्व कुत्तों पर क्रूरता करते हैं।
एजाज ढेबर, महापौर रायपुर ने कहा “देश के कुछ बड़े शहरों में कुत्तों के लिए बनाए गए ऐसे बाड़ों की जानकारी जुटाई गई है। उनके संचालन की व्यवस्था और अन्य चीजों के बारे में पता करने के बाद बाड़े का प्लान तैयार किया गया। अटारी में पांच एकड़ जगह चिन्हित कर ली गई है।“