अजय बोकिल
रिटायरमेंट के दिन केन्द्र सरकार द्वारा मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव इकबालसिंह बैंस की 6 माह की सेवावृद्धि के आदेश के साथ ही राज्य में नए चीफ सेक्रेटरी को लेकर दो माह से चल रहे सस्पेंस ड्रामे का पटाक्षेप हो गया। नौकरशाही में कई दिनो से चल रहा, साहब का रिटायरमेंट होगा कि नहीं होगा’ का असमंजस भी केन्द्र सरकार की उस चिट्ठी के साथ खत्म हो गया, जिसमें बैंस के 6 माह अपनी कुर्सी
पर कायम रहने का फरमान था। यह बात अलग है कि इसके लिए मुख्यमंत्री शिवराजसिंह को पूरा जोर लगाना पड़ा और वो इसके लिए दिल्ली दरबार तक गुहार लगा आए।
किसी भी आला कुर्सी पर बैठी शख्सियत का सत्ता में रहना उतना थ्रिलिंग नहीं होता, जितना कि उसका कुर्सी से उतरने की अटकलों का होता है। साहब जाएंगे या रहेंगे यह सवाल हेमलेट के ‘टू बी आॅर नाॅट टू बी’ की तरह रोमांचक होता है। खासकर तब कि मामला प्रदेश की नौकरशाही के मुखिया का हो और हकीकत में पूरी सत्ता जिसके हाथ में हो। ताजा एपीसोड में खास बात यह थी कि एक तरफ मुख्य सचिव अपने रिटायर होने के मानस का परोक्ष संदेश देते जा रहे थे तो दूसरी तरफ नौकरी के एक्सटेंशन के सहकर्मियों और मातहतों के टेंशन को भी उन्होंने मरने नहीं दिया था। लिहाजा बीच बीच में यह खबरे उड़ती रहीं कि साहब जा भी सकते हैं और बने भी रह सकते हैं। दूसरी खबर का आधार बैंस की मुख्यमंत्री शिवराज से ट्यूनिंग थी। मुख्यमंत्री बैंस को परफार्मर अफसर मानते हैं और उनकी कोशिश थी कि अगले विधानसभा चुनाव तक प्रशासन की कमान उन्हीं के हाथों में रहे। इसके लिए उन्होने पूरी ताकत लगा दी, जिसे केन्द्र में बैठी मोदी सरकार ने आखिर मान लिया। हालांकि इस फैसले ने उन लोगों की उम्मीदों को दफना दिया, जो सीएस की कुर्सी पर विराजमान होना चाहते थे।
हालांकि राज्य में यह पहला मौका नहीं था, जब किसी मुख्य सचिव को सेवा वृद्धि मिली हो, बैंस के पहले चार मुख्य सचिवो आर.पी.कपूर, हरीश खन्ना, आर. परशुराम तथा एंटोनी डीसा को भी सर्विस एक्सटेंशन मिला था। वह भी लगभग रिटायरमेंट के आखिरी दिनों की ही बात थी। लेकिन अटकलों का जैसा दौर इस बार देखने को मिला, वैसा कम ही देखने में आता है। साहब के रहने या जाने की हर सूचना लोगों के दिल की धड़कने बढ़ा रही थी। हसरतों और मायूसी के बीच खो खो का खेल चल रहा था, जिस पर 30 सितंबर को विराम लग गया। मुख्यमंत्री शिवराज ने खुद अपने हाथो से इकबाल के इकबाल को कायम रखने की मिठाई खिला दी।
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ब्यूरोक्रेटों का रिटायर होना कोई असामान्य बात नहीं है। क्योंकि वो उम्र के कायदों से बंधे होते हैं। एक जाता है, दूसरा आता है। कमान एक हाथ से दूसरे हाथ को स्थानांतरित होती रहती है। लेकिन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान हर कीमत पर बैंस को ही चीफ सेक्रेटरी बनाए रखना चाहते थे। इसका मुख्य कारण बैंस में उनका विश्वास और प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा को जीतने की चुनौती है। बेहद कम बोलने वाले और अपने काम में ज्यादा भरोसा करने वाले बैंस 1989 बैच के आईएएस अफसर हैं। उनका बेटा भी मप्र का काडर का आईएएस अधिकारी है। यह भी दुर्लभ संयोग है।
तमाम अटकलों के बीच खास बात यही है कि बैंस मुख्यंमंत्री शिवराज के विश्वस्तो में हैं। राजदारो और खैरख्वाहों में हैं। सीएस बनने से पहले वो मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव रह चुके हैं। वो केन्द्र में प्रतिनियुक्ति पर गए थे, लेकिन शिवराज ने उन्हें जल्द ही वापस बुला लिया। जब शिवराज ने मप्र में बतौर सीएम अपनी चौथी पारी शुरू की तो कमलनाथ सरकार द्वारा नियुक्त गोपाल रेड्डी को हटाकर इकबाल सिंह बैंस को अपना सीएस बनाया। माना जाता है कि बैंस रिजल्ट देने वाले अफसर हैं और मप्र में शिवराज किसी दूसरे को सीएस बनाकर जोखिम मोल नहीं लेना चाहते थे। सर्विस बुक के हिसाब से बैंस का रिटायरमेंट 30 नवंबर होना था। उनकी जगह कौन नया सीएस बनेगा, इसको लेकर प्रशासनिक और राजनीतिक हल्को में भारी उत्सुकता थी। उनके उत्तराधिकारी के रूप में पहले बैंस की ही बैच के अनुराग जैन का नाम उछला। फिर खबर आई कि शिवराज के करीबी एक और अफसर मोहम्मद सुलेमान नए सीएस हो सकते हैं। हालांकि अनुराग जैन केन्द्र सरकार में सचिव हैं और गति शक्ति जैसा अत्यंत महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट वो देख रहे हैं। बताया जाता है कि वो स्वयं मप्र आने को लेकर अनिच्छुक थे। यूं भी मप्र में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। अगर खुदा न खास्ता सरकार बदल गई तो अनुराग साल भर भी मुश्किल से सीएस रह पाते। इसके पहले वो मप्र में कमलनाथ सरकार के दौरान दो पूर्व मुख्य सचिवों का हाल देख चुके हैं। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कांग्रेस सरकार के समय सुधिरंजन मोहंती के स्थान पर गोपाल रेड्डी को सीएस बनाया था। लेकिन सत्ता परिवर्तन हो जाने के कारण रेड्डी महज 7 दिन ही इस कुर्सी पर रह सके। शिवराज सरकार ने आते ही उन्हें चलता कर दिया। बतौर सीएस रेड्डी की चांदनी चार दिन की भी नहीं रही। वैसे राज्य के मुख्य सचिव के पद पर सर्वाधिक समय तक रहने का रिकाॅर्ड प्रदेश के पहले सीएस एच.एस.कामथ के नाम है, जो अविभाजित मप्र के 7 साल तक मुख्य. सचिव रहे और उन्हीं के कार्यकाल में नए बने मध्यप्रदेश राज्य का भौगोलिक तथा प्रशासनिक एकीकरण हुआ।
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नियमानुसार किसी भी सीएस को सेवानिवृत्ति के बाद 6 माह की ही सेवा वृद्धि मिलती है। साल भर की बात करें तो बैंस को 6 माह की एक सेवा वृद्धि और मिलना तय है, क्योंकि राज्य में विधानसभा चुनाव 2023 दिसंबर में होंगे। हालांकि ऐन चुनाव के वक्त शायद बैंस प्रशासनिक मुखिया के पद पर नहीं पाएंगे। लेकिन तब तक बाकी जमावट हो चुकी होगी। मुख्य मंत्री द्वारा सेवावृद्धि की तमाम कोशिशों के बरक्स मितभाषी बैंस बीच-बीच में संकेत देते रहे कि वो रिटायर होने का मानस बना चुके हैं। उन्होंने अपना सरकारी आवास काफी पहले खाली कर दिया था। साथ ही 30 नवंबर को आयोजित सभी बैठकें भी निरस्त कर दी थीं। इसी बीच सामान्य प्रशासन विभाग (कार्मिक) द्वारा 24 नवंबर को सभी आईएएस अधिकारियों को जारी एक आदेश चर्चा का विषय बना, जिसमें कहा गया था कि चूंकि बैंस 30 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं, इसलिए मप्र कैडर के सभी आईएएस अधिकारी अपनी परफॉर्मेंस अप्रेजल रिपोर्ट ऑनलाइन भर दें, ताकि मुख्य सचिव कामकाज की रैंकिंग करके अपने नंबर दे सकें। मातहतों का अप्रेजल जो भी हो, फिलहाल बैंस की लकीर और बड़ी हो गई है।
वरिष्ठ संपादक
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