गुजरात; राज्य भर में फैले चुनावी बुखार से पूरी तरह अछूता है सेक्स वर्कर्स का ये गांव…

जब चुनाव आयोग ने 3 नवंबर को गुजरात में विधानसभा चुनाव की घोषणा की, तो उसने कहा कि रेड लाइट एरिया में जागरूकता अभियान चलाया जाएगा।

जबकि बनासकांठा के थराद तालुका में सेक्स वर्कर्स के गांव के रूप में कुख्यात वाडिया नाम का एक गांव चुनाव आयोग के अधिकारियों के साथ-साथ राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं से भी अछूता है।

थराद सीट से कांग्रेस विधायक गुलाबसिंह राजपूत के खिलाफ पूर्व मंत्री और बीजेपी उम्मीदवार शंकर चौधरी चुनाव लड़ रहे हैं।

वाडिया गांव की आबादी लगभग 700 है। जिसमें 50 परिवार परंपरागत रूप से देह व्यापार पर निर्भर हैं। यहां की इस प्रथा को खत्म करने के लिए सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कई बार असफल प्रयास किए हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के मुताबिक 30 वर्षीय दिनेश सरानिया नाम के एक ग्रामीण ने कहा कि यह उदासीनता इस चुनाव के लिए अनोखी नहीं है।

उन्होंने कहा कि ‘पहले के चुनावों में भी हमारी उपेक्षा की गई। हम आस-पास के गांवों में लाउडस्पीकर, ढोल और नारे सुनते हैं, लेकिन उम्मीदवार हमारे गांव नहीं आते हैं।’

ग्रामीणों की कुछ समस्याओं को बताते हुए सरानिया ने कहा कि उनके घर उनके नाम पर पंजीकृत नहीं हैं, इसलिए वे कई कल्याणकारी योजनाओं के लाभ से वंचित हैं।

सरानिया ने कहा कि उनके गांव में सड़क या स्वास्थ्य केंद्र जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। कोई भी हमारे मुद्दों को हल करने की हिम्मत नहीं करता है।

बहरहाल उसने यह नहीं बताया कि वह क्या रोजगार करता है।

गांव के एक शिक्षक ने कहा कि स्कूल में कमरे नहीं हैं और छात्र खुले में पढ़ते हैं। उन्होंने कहा कि असली समस्या मानसिकता की है, जो सरकारी अधिकारियों और बुनियादी सुविधाओं को वडिया से दूर रखती है।

कभी-कभी जो लोग सेक्स वर्कर्स से संपर्क करना चाहते हैं, वे खुद को अधिकारी बताकर थराद-धनेरा राजमार्ग से इस गांव का रास्ता पूछते हैं।

जबकि असली सरकारी अधिकारी, सार्वजनिक पदाधिकारी या राजनीतिक नेता कभी भी इस जगह पर नहीं जाते हैं। वडिया और वडगामदा गांवों को एक समूह पंचायत चलाती है।

उसके सरपंच जगदीश असल ने कहा कि वह कुछ दिन पहले वाडिया गए थे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी के पास मतदाता पहचान पत्र हो।

असल ने कहा कि एकमात्र समस्या ये है कि ग्रामीणों को वोट देने के लिए वडगामदा जाना पड़ता है।

जबकि जिला कलेक्टर आनंद पटेल कई प्रयासों के बावजूद अपनी टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं हो सके थे।

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