सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को हाई कोर्ट और निचली अदालतों में जजों की संख्या दोगुनी करने की मांग वाली बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने की।
शुरुआत में ही, सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि लोकलुभावन उपायों और सरल समाधान से किसी भी मुद्दे को हल करना संभव नहीं है।
सीजेआई ने कहा, ‘इस तरह की याचिका पर यूके और यूएस सुप्रीम कोर्ट में विचार नहीं किया जाएगा। यूएस सुप्रीम कोर्ट वकीलों को भी नहीं सुनता है कि क्या मामलों को स्वीकार किया जाना चाहिए। यह हमारे सिस्टम के कारण है। उचित रिसर्च के साथ आएं।’
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘जब मैं इलाहाबाद हाई कोर्ट में था, तो तत्कालीन कानून मंत्री ने मुझे जजों की संख्या 25 प्रतिशत बढ़ाने के लिए कहा था। मैं 160 भी नहीं भर सका। बॉम्बे हाईकोर्ट से पूछिए कि कितने वकील जज का पद स्वीकार करने को तैयार हैं। केवल अधिक जजों को जोड़ना इसका उत्तर नहीं है, आपको अच्छे जजों की जरूरत है। कृपया इस याचिका को वापस लें।”
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, ‘ये सभी लोकलुभावन उपाय हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट में 160 सीटों को भरना मुश्किल है और आप 320 की मांग कर रहे हैं? क्या आप बॉम्बे हाई कोर्ट गए हैं? वहां एक भी जज को नहीं जोड़ा जा सकता, क्योंकि वहां कोई बुनियादी ढांचा नहीं है। केवल जजों की संख्या बढ़ाना जवाब नहीं है। फिर इलाहाबाद में 320, 640 क्यों जोड़ें? हर कमियां जो आप देखते हैं उसके लिए जनहित याचिका की जरूरत नहीं है। मौजूदा सीटों पर जजों को भरने की कोशिश करें, फिर आप देखेंगे कि यह कितना कठिन है।”
उन्होंने आगे कहा कि अधिक जजों की संख्या सभी कमियों को दूर करने का रामबाण नहीं है। इस तरह की सामान्य जनहित याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा विचार नहीं किया जा सकता।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने यह भी टिप्पणी की कि अदालत न्यायिक समय लेने के लिए ऐसी जनहित याचिकाओं पर जुर्माना लगा सकती है, जो वास्तविक मामलों को सुनने के लिए सार्वजनिक समय था।
हालांकि, वकील उपाध्याय ने कहा कि याचिका जनहित याचिका के रूप में है और विरोधात्मक नहीं है। उन्होंने कहा कि करोड़ों भारतीय अदालतों के अत्यधिक बोझ के कारण न्यायिक समाधान की कमी के कारण पीड़ित हैं।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि याचिका संसद की तरह ही है कि यह सुनिश्चित करने के लिए एक अधिनियम पारित किया जा सकता है कि सभी मामलों को 6 महीने के भीतर निपटा दिया जाएगा।
वहीं, जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने कहा कि कई अध्ययन हुए हैं, जिसमें कहा गया है कि केवल जजों की संख्या बढ़ाना लंबित मामलों का समाधान नहीं है। वकील ने कहा कि सभी विकसित देशों में स्थिति अलग है, जहां जजों की संख्या अधिक है।
कोर्ट ने याचिका वापस लेने के साथ खारिज कर दी और भर्ती, रिक्तियों आदि के आंकड़ों पर रिसर्च के साथ एक नई याचिका दायर करने की स्वतंत्रता दी है।