भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी. वाई. चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को कहा कि संवैधानिक लोकतंत्र में कॉलेजियम सहित कोई भी संस्था परिपूर्ण नहीं है और इसका समाधान मौजूदा व्यवस्था के भीतर काम करना है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) की ओर से यहां आयोजित संविधान दिवस समारोह में कहा कि न्यायाधीश वफादार सैनिक होते हैं जो संविधान लागू करते हैं।
संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान अपनाया था और इस दिवस को वर्ष 2015 से पहले तक विधि दिवस के रूप में मनाया जाता था, लेकिन 2015 से इसे संविधान संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है।
कॉलेजियम के मुद्दे पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘अंत में, कॉलेजियम के बारे में आलोचना। मैंने सोचा था कि मैं आखिरी (चीज) के लिए सर्वश्रेष्ठ आरक्षित रखूंगा।
संवैधानिक लोकतंत्र में कोई भी संस्था परिपूर्ण नहीं है, लेकिन हम संविधान के मौजूदा ढांचे के भीतर काम करते हैं।
मेरे सहित कॉलेजियम के सभी न्यायाधीश, हम संविधान को लागू करने वाले वफादार सैनिक हैं। जब हम खामियों की बात करते हैं, तो हमारा समाधान है- मौजूदा व्यवस्था के भीतर काम करना।”
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका में अच्छे लोगों को लाने और उन्हें उच्च वेतन देने से कॉलेजियम प्रणाली में सुधार नहीं होगा। सीजेआई ने कहा, ‘‘अध्यक्ष (एससीबीए के) ने अच्छे लोगों के बारे में प्रश्न उठाया है। अच्छे लोगों को न्यायपालिका में प्रवेश दिलाना, अच्छे वकीलों को न्यायपालिका में प्रवेश दिलाना केवल कॉलेजियम में सुधार करने का कार्य नहीं है। न्यायाधीश बनाना इससे जुड़ा नहीं है कि कितना वेतन आप न्यायाधीशों को देते हैं। आप न्यायाधीशों को कितना भी अधिक भुगतान करें, यह एक दिन में एक सफल वकील की कमाई का एक अंश होगा।”
सीजेआई ने कहा कि लोग सार्वजनिक सेवाओं के प्रति प्रतिबद्धता की भावना के लिए न्यायाधीश बनते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जज बनना अंतरात्मा की पुकार है।
न्यायिक कार्यालयों को युवा वकीलों के लिए आकर्षक बनाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि युवा वकीलों को न्यायाधीशों द्वारा सलाह दी जाये।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि संविधान समय की नयी सामाजिक वास्तविकताओं को पूरा करने के लिए लगातार विकसित हो रहा है।
उन्होंने कहा कि आम नागरिकों को न्याय दिलाने के मिशन में न्यायपालिका और बार समान हितधारक हैं।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘न्यायिक प्रक्रिया में हमारे नागरिकों का विश्वास इस बात से भी निर्धारित होता है कि हम कितने कुशल हैं, जिस तरह से हम अपने न्यायिक संस्थानों में अपने काम को व्यवस्थित करते हैं। ऐसा न केवल उन महत्वपूर्ण निर्णयों के संदर्भ में है जो हम देते हैं, बल्कि नागरिकों के लिए भी यह अंततः मायने रखता है कि उनके मामले की सुनवाई अदालत द्वारा की जाती है।”
बार के वरिष्ठ सदस्य से गरीब वादियों के मामलों को नि:शुल्क लड़ने का अनुरोध करते हुए उन्होंने कहा कि प्रक्रिया को संस्थागत बनाया जा सकता है और वह इस पर बातचीत के लिए तैयार हैं।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि कानूनी पेशे को अपने औपनिवेशिक आधार को छोड़ने की जरूरत है और वकीलों के सख्त ड्रेस कोड (विशेष रूप से गर्मियों में) पर पुनर्विचार किया जा सकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं ड्रेस को हमारे जीवन, मौसम और समय के अनुकूल बनाने पर विचार कर रहा हूं। ड्रेस पर सख्ती से महिला वकीलों की नैतिक पहरेदारी नहीं होनी चाहिए।”