राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए राजस्थान कांग्रेस में जारी उठापटक एक गंभीर संकट बन गई है। उनके लिए अब इसे टालना आसान नहीं होगा।
इसका असर अगले साल विधानसभा चुनाव पर भी दिख सकता है, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के राजस्थान में प्रवेश से पहले सचिन पायलट खेमे के द्वारा हफ्तों के अथक दबाव के बाद अशोक गहलोत ने कहा है कि उन्हें पार्टी आलाकमान से किसी भी तरह के बदलाव का कोई भी संकेत नहीं मिला है।
आपको बता दें कि सीएम गहलोत ने पायलट को यह कहकर अपमानित किया कि उनके पास 10 विधायक भी नहीं हैं। उन्होंने पायलट के द्वारा 2020 में अपनाए गए बागी तेवर के लिए गद्दार करार दिया।
गहलोत ने पूछा, “एक व्यक्ति जिसके पास 10 विधायक भी नहीं हैं, जिसने विद्रोह का नेतृत्व किया था, जिसे गद्दार कहा जाता है, वो लोगों को स्वीकार्य कैसे हो सकता है?”
गहलोत ने इस बात रो दोहराया कि उनके पास इस बात का सबूत है कि पायलट की उस समय भाजपा से बात चल रही थी। उनके खेमे के प्रत्येक कांग्रेस विधायक के बीच 10 करोड़ रुपये बांटे गए।
पायलट के प्रति वफादार पार्टी नेताओं ने झालावाड़, कोटा और बूंदी जिलों में प्रेस कॉन्फ्रेंस की और मांग की कि राज्य नेतृत्व सहित लंबित मुद्दों को केंद्रीय नेतृत्व और राजस्थान कांग्रेस के विधायकों के बीच आमने-सामने बातचीत के माध्यम से संबोधित किया जाए।
इसके बाद पूर्व राज्य प्रभारी अजय माकन द्वारा पार्टी प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे को लिखे गए एक पत्र के कुछ हिस्सों को सार्वजनिक किया गया। इसमें माकन ने इस पद पर बने रहने के लिए अपनी अनिच्छा व्यक्त की थी।
राज्य के संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल, पार्टी के मुख्य सचेतक महेश जोशी और राजस्थान पर्यटन विकास निगम (आरटीडीसी) के अध्यक्ष धर्मेंद्र राठौर के खिलाफ अनुशासनात्मक समिति द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी किए जाने के बावजूद उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होने के कारण पायलट खेमे के विधायक नाराज बताए जा रहे हैं। गहलोत खेमा इस मुद्दे पर चुप रहा।
ओसियां की विधायक दिव्या मदेरणा ने दावा किया कि उनकी एकमात्र निष्ठा हाईकमान के प्रति है। उन्होंने पत्र को लेकर गहलोत खेमे पर हमला करते हुए कहा, “आत्म-सम्मान वाले व्यक्ति के पास ऐसी परिस्थितियों में पद छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। यही मिस्टर माकन ने किया था।”
इसके बाद से पायलट-कैंप के नेता (कैबिनेट मंत्री हेमाराम चौधरी, एससी आयोग के अध्यक्ष और विधायक खिलाड़ी लाल बैरवा और पूर्व विधायक सुचित्रा आर्य) सभी पायलट के लिए मुखर रूप से बैटिंग कर रहे हैं।
पायलट खेमे या उनके समर्थकों के हालिया बैक-टू-बैक बयानों से यह धारणा बन गई है कि कि पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की मांग बढ़ रही है और इसमें और देरी नहीं की जा सकती है।
अशोक गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले अक्टूबर में सुर्खियों में छाए रहे थे। इस दौरान उन्होंने सचिन पायलट और अजय माकन का नाम लिए बिना हमला करना जारी रखा।
उन्होंने यहां तक कहा कि अनुभव का कोई विकल्प नहीं होता है। गहलोत ने युवाओं को धैर्य रखने और अपनी बारी का इंतजार करने की नसीहत दी थी।
जैसे-जैसे गहलोत आक्रामक होते गए उनका चेहरा अचानक हर जगह (होर्डिंग, रोड बैनर और अखबार के विज्ञापनों पर) दिखने लगा।
इसके जरिए यह बताने की कोशिश की गई कि अशोक गहलोत राजस्थान छोड़कर फिलहाल कहीं नहीं जा रहे हैं। गहलोत की रणनीति कोई नई नहीं है।
जब-जब पायलट खेमे ने मुख्यमंत्री के रूप में अपने नेता का नाम आगे किया, गहलोत ने 2020 की यादें ताजा कर दीं। पायलट ने 18 विधायकों के साथ अपनी सरकार के खिलाफ बगावत की थी।
ये घटनाक्रम फिर से दिखाते हैं कि मल्लिकार्जुन खड़गे को राजस्थान की गुटबाजी को समाप्त करने के लिए जल्द से जल्द एक समाधान के साथ आगे आना होगा।
अब वह अधिक समय तक इस मुद्दे पर पर्दा नहीं डाल सकते हैं। यथास्थिति को बनाए रखने में पार्टी को अगले विधानसभा चुनाव में विनाशकारी परिणाम का सामना करना पड़ सकता है।