हिमाचल प्रदेश की 68 विधानसभा सीटों के लिए शनिवार को मतदान संपन्न हो गया।
राज्य में मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इसके साथ ही 412 प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में बंद हो गई है।
इस बार मतदान का प्रतिशत साल 2017 के चुनाव के मुकाबले अधिक रहा। इस बार कुल 75।2 फीसदी मतदान हुआ।
राज्य में 2017 में 74।6 प्रतिशत मतदान हुआ था। यानी इस बार वोटिंग में 1।2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। आठ दिसंबर को नतीजे आएंगे।
मामले से जुड़ी अहम जानकारियां :
2019 के लोकसभा चुनाव में 72।4 फीसदी वोटिंग हुई थी। वहीं 2017 के विधानसभा चुनावों में यह आंकड़ा 74।6 प्रतिशत था, जो 2003 के बाद सबसे अधिक है।
दूसरी ओर, कांग्रेस का कहना है कि चुनाव स्थानीय मुद्दों के बारे में है। पार्टी को उम्मीद है कि सत्ताधारी को वोट नहीं देने की चार दशक की परंपरा इस बार भी दोहराई जाए।
पार्टी वीरभद्र सिंह के निधन के बाद से ही नेतृत्व के संकट से घिरी है। पार्टी का कहना है कि वह सत्ता में वापसी करेगी क्योंकि उसका सीट-वार टिकट आवंटन “पहले की तुलना में काफी बेहतर” रहा है।
वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह राज्य इकाई प्रमुख हैं और उम्मीदवारों में उनके पुत्र विक्रमादित्य सिंह भी शामिल हैं।
जयराम ठाकुर के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को लेकर चुनाव मैदान में उतरने वाली सत्तारूढ़ भाजपा इस बात पर जोर देती रही है कि विकास के लिए ‘निरंतरता’ जरूरी है। पार्टी का तर्क है कि “डबल इंजन” यानी राज्य और केंद्र की सत्ता में एक ही पार्टी की सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि काम बाधित न हो।
भाजपा के लिए सबसे बड़ी चिंता 21 बागी हैं। यह चुनाव पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के लिए एक भी प्रतिष्ठा का मुद्दा हैं, जो खुद हिमाचल से आते हैं। वह कभी प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में राज्य में मंत्री थे। धूमल उन लोगों में शामिल हैं जो चुनाव नहीं लड़ रहे हैं।
भाजपा ने केंद्रीय मंत्रियों और अपनी हिंदुत्व विचारधारा के आक्रामक चेहरे के रूप में देखे जाने वाले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हिमाचल में प्रचार के लिए उतारा था। वहीं कांग्रेस के लिए प्रियंका गांधी ने रैलियां कीं, जबकि उनके भाई राहुल गांधी ने इस अभियान के लिए अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ छोड़ना ठीक नहीं समझा। हिमाचल में 24 सालों में कांग्रेस के पहले गैर गांधी प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी प्रचार किया।
कांग्रेस ने पीएम मोदी के गढ़ गुजरात में एक कम महत्वपूर्ण अभियान चलाया है, जहां पर अगले महीने मतदान होना है। पार्टी करीब दो सालों में नौ राज्यों में जीतने या फिर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने में विफल रही है।
ये चुनाव अगले साल नौ राज्यों के चुनावों से पहले आते हैं, जिनमें राजस्थान और छत्तीसगढ़ पट्टी वाले राज्य शामिल हैं, जहां पर कांग्रेस के मुख्यमंत्री हैं।
इस साल की शुरुआत में कांग्रेस ने हिमाचल के पड़ोसी राज्य पंजाब में आम आदमी पार्टी के हाथों सत्ता गंवा दी थी। आम आदमी पार्टी हिमाचल में भी चुनाव लड़ रही है, लेकिन जाहिर तौर पर उसका ध्यान गुजरात पर था।
2004 से पहले की पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने का कांग्रेस का वादा एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया क्योंकि राज्य में 2 लाख से अधिक सरकारी कर्मचारी हैं। भाजपा ने राज्य में समान नागरिक संहिता और 8 लाख नौकरियों का वादा किया है। वहीं पेंशन पर पार्टी का कहना है कि “अगर कोई पुरानी योजना को बहाल करेगा, तो वह भाजपा होगी”।
सिराज से मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के अलावा महत्वपूर्ण उम्मीदवारों में कसुम्प्टी से मंत्री सुरेश भारद्वाज, हरोली से कांग्रेस विधायक दल के नेता मुकेश अग्निहोत्री, शिमला ग्रामीण से विक्रमादित्य सिंह और कांग्रेस अभियान समिति के प्रमुख सुखविंदर सिंह सुक्खू शामिल हैं।
सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक मतदान के लिए चुनाव आयोग ने दूर-दराज के तीन इलाकों सहित 7,884 मतदान केंद्र बनाए। सबसे ऊंचा बूथ लाहौल-स्पीति जिले के काजा के ताशीगंग में 52 मतदाताओं के लिए 15,256 फीट की ऊंचाई पर बनाया गया।