ऐसे समय जब अवैध खनन मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, प्रवर्तन निदेशालय के ‘निशाने’ पर हैं, उनकी पार्टी वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान किए गए दो अहम वादों को पूरा करने की तैयारी में जुटी है।
शुक्रवार को झारखंड विधानसभा के विशेष सत्र में दो ऐतिहासिक बिलों को मंजूरी दिए जाने की संभावना है।
इसमें से पहला बिल, 1932 के भूमि रिकॉर्ड का उपयोग करके इसके स्थानीय निवासियों का निर्धारण करने और दूसरा अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए रोजगार और नौकरियों में आरक्षण 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी किए जाने से संबंधित है।
बिलों को राजनीतिक रूप से इतना संवेदनशील माना जा रहा है कि इस बात की संभावना बेहद कम है कि विपक्ष इसका विरोध करेगा, हालांकि स्थायी निवासी के रिकॉर्ड्स में बदलाव किए जा सकते हैं।
यही नहीं, बीजेपी, जिस पर विपक्षियों को टारगेट करने के लिए ईडी जैसी सरकारी एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया जा रहा है, को दरकिनार करने के लिए राज्य सरकार पहले ही यह कह चुकी है कि राज्यपाल की मंजूरी के बाद यह केंद्र पर निर्भर होगा कि नया कोटा सिस्टम अदालतों की लड़ाई में उलझकर न रह जाए।
नई आरक्षण नीति के तहत न केवल ओबीसी कोर्ट को 14 से 27 फीसदी तक बढ़ाया जाना है बल्कि अनुसूचित जनजाति का कोटा 26 से 28 और अनुसूचित जाति का कोटा 10 से बढ़ाकर 12 फीसदी किया जाएगा।
आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) वाले सवर्ण वर्ग के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से पिछले सप्ताह बरकरार रखे गए 10 फीसदी आरक्षण को जोड़ने के बाद राज्य में कुल आरक्षण बढ़कर 77 फीसदी पहुंच जाएगा जो देश में सर्वाधिक है।
स्थायी निवास रिकॉर्ड नीति (Domicile records policy) की बात करें तो यह राज्य के आदिवासी समूह की प्रमुख मांगों में से एक है।
इनका कहना है कि तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा कराए गए आखिरी लैंड सर्वे को स्थानीय लोगों को परिभाषित करने के आधार के तौर पर इस्तेमाल किया गया था और झारखंड सरकार ने सितंबर में इसे मंजूरी दी थी।
बिल के कानून का रूप लेने के बाद जिन लोगों के पूर्वज 1932 से पहले राज्य में रह रहे थे और जिनके नाम उस वर्ष के लैंड रिकॉर्ड्स के शामिल थे, वे झारखंड के स्थानीय निवासी माने जाएंगे।