इस्लाम और ईसाई धर्म अपनाने वाले दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल किया है।
केंद्र ने इस्लाम और ईसाई धर्म अपनाने वालों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने का विरोध किया है।
केंद्र सरकार ने कहा इस्लाम और क्रिश्चियनिटी अपनाने वालों को अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया जा सकता क्योंकि इन धर्मों में जातीय आधार पर भेदभाव नहीं है। ईसाई या इस्लाम समाज में छुआछूत की दमनकारी व्यवस्था प्रचलित नहीं थी।
ईसाई या इस्लामी समाज के सदस्यों को कभी भी इस तरह के पिछड़ेपन या उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ा। सिखों, बौद्ध धर्म में धर्मांतरण की प्रकृति ईसाई धर्म में धर्मांतरण से भिन्न रही है।
दूसरे धर्म में परिवर्तन करने पर व्यक्ति अपनी जाति खो देता है। कोर्ट राष्ट्रपति के आदेश में बदलाव का निर्देश नहीं दे सकता।
एक विशेष वर्गीकरण या एक विशेष कानून बनाने से पहले केवल आवश्यकता यह है कि विधायी वर्गीकरण एक समझदार अंतर पर आधारित होना चाहिए जिसका उस उद्देश्य से उचित संबंध हो जिसे विधायिका प्राप्त करना चाहती है।
राष्ट्रीय धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक आयोग की रिपोर्ट में एक असहमति नोट का भी हवाला दिया। जिसमें कहा गया था कि ईसाई और इस्लाम अनिवार्य रूप से विदेशी धर्म हैं और इस तरह वे जाति व्यवस्था को मान्यता नहीं देते हैं और ऐसे लोगों को अनुसूचित जाति का दर्जा प्रदान करना उन धर्मों में जाति व्यवस्था की शुरुआत करना होगी।
केंद्र सरकार ने हलफनामे में यह भी कहा गया है कि रंगनाथ मिश्रा कमीशन ने जमीनी हकीकत का अध्ययन किए बिना सभी धर्मों में धर्मांतरण कराकर गए लोगों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की सिफारिश की थी।
जिसे सरकार ने स्वीकार नहीं किया था। इस मुद्दे के महत्व और संवेदनशीलता को देखते हुए भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय आयोग का गठन किया है, जो उन लोगों को अनुसूचित जाति का दर्जा प्रदान करने के मुद्दों पर गौर करेगा जो अनुसूचित जाति से संबंधित हैं लेकिन अन्य धर्मों में परिवर्तित हो गए हैं।