केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) ने कहा “सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की वर्तमान प्रणाली से मैं खुश नहीं हूं…”

केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) ने कहा है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए उच्चतम न्यायालय की मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली ‘‘अपारदर्शी” है।

रिजीजू ने कहा कि सबसे ‘‘योग्य” व्यक्ति को न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए, न कि किसी ऐसे व्यक्ति को जिसे कॉलेजियम जानता हो।

केंद्रीय मंत्री यहां इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में ‘रिफॉर्मिंग जूडिशियरी’ विषय पर बोल रहे थे। मंत्री ने कहा, ‘‘मैं न्यायपालिका या न्यायाधीशों की आलोचना नहीं कर रहा हूं।मैं सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की वर्तमान प्रणाली से खुश नहीं हूं। कोई भी प्रणाली सही नहीं है। हमें हमेशा एक बेहतर प्रणाली की दिशा में प्रयास करना और काम करना है।”

उन्होंने कहा कि व्यवस्था को जवाबदेह और पारदर्शी होना चाहिए और ‘‘अगर यह अपारदर्शी है, तो संबंधित मंत्री नहीं तो और कौन इसके खिलाफ बोलेगा।” उन्होंने कहा कि वह केवल वकील समुदाय और यहां तक कि कुछ न्यायाधीशों सहित लोगों की ‘‘सोच को प्रतिबिंबित’ कर रहे हैं।

रिजिजू ने कहा, ‘‘मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली का मूल दोष यह है कि न्यायाधीश उन सहयोगियों की सिफारिश कर रहे हैं, जिन्हें वे जानते हैं। जाहिर है, वे ऐसे न्यायाधीश की सिफारिश नहीं करेंगे जिसे वे नहीं जानते।” मंत्री ने कहा, ‘‘सबसे योग्य को नियुक्त किया जाना चाहिए, न कि ऐसे किसी को जिसे कॉलेजियम जानता हो।” यह पूछे जाने पर कि अगर सरकार को शामिल किया जाता है तो प्रक्रिया अलग कैसे हो जाएगी, रिजिजू ने कहा कि सरकार के पास जानकारी एकत्र करने और उचित जांच-पड़ताल के लिए एक स्वतंत्र तंत्र है। उन्होंने कहा, ‘‘सरकार के पास निर्णय लेने से पहले खुफिया ब्यूरो और कई अन्य रिपोर्ट होती है, जिसका वह इस्तेमाल कर सकती है। न्यायपालिका या न्यायाधीशों के पास यह नहीं है।”

कानून मंत्री ने कहा कि दुनिया भर में सरकारें न्यायाधीशों की नियुक्ति करती हैं।

रिजिजू ने कहा, ‘‘इसकी वजह से न्यायपालिका में भी राजनीति है। वे (न्यायाधीश) इसे नहीं प्रतीत होने दे सकते हैं, लेकिन गहन राजनीति है।” उन्होंने सवाल किया, ‘‘क्या न्यायाधीशों को ऐसे प्रशासनिक कार्यों में फंसना चाहिए या न्याय देने में अधिक समय लेना चाहिए।”

सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को खारिज करने पर रिजिजू ने कहा कि सरकार ने अभी तक इस पर कुछ नहीं कहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘जब इसे खत्म किया गया तो सरकार कुछ कदम उठा सकती थी।।।लेकिन ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि वह न्यायपालिका का सम्मान करती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम हमेशा चुप रहेंगे।”

उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी नीत सरकार न्यायपालिका की स्वतंत्रता में विश्वास करती है और इसलिए उसने इसे कमजोर करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।

रिजिजू ने कहा, ‘‘लेकिन न्यायपालिका को कार्यपालिका की भूमिका में नहीं आना चाहिए। जब न्यायाधीश मौखिक टिप्पणी करते हैं, तो इसे व्यापक कवरेज मिलता है, हालांकि इस तरह की टिप्पणियों का (मामले पर) कोई असर नहीं पड़ता है। एक न्यायाधीश को अनावश्यक टिप्पणियां करने और आलोचना आमंत्रित करने के बजाय अपने आदेश के माध्यम से बोलना चाहिए।”

देश भर की अदालतों में बड़ी संख्या में मामले दर्ज होने पर अफसोस जताते हुए रिजिजू ने कहा कि ज्यादातर मामलों को अदालतों के बाहर सुलझाया जा सकता है।

उन्होंने कहा, ‘‘हम मध्यस्थता विधेयक पेश कर रहे हैं और मुझे उम्मीद है कि आगामी शीतकालीन सत्र में इसे पारित कर दिया जाएगा। मध्यस्थता के जरिये बड़ी संख्या में मामलों का निपटारा किया जा सकता है।”

रिजिजू ने कहा कि वह तब बहुत निराश हुए थे जब उच्चतम न्यायालय ने राजद्रोह कानून पर रोक लगा दी, जबकि सरकार ने आश्वासन दिया था कि वह कानून की समीक्षा कर रही है। रिजिजू ने कहा, ‘‘जब सरकार पहले ही कह चुकी है कि कानून और उसके प्रावधान पुराने हैं और हम इसकी समीक्षा कर रहे हैं, तब भी उच्चतम न्यायालय ने इसे रद्द कर दिया। तभी मैंने कहा था कि हर किसी के लिए एक लक्ष्मण रेखा होती है, जिसे पार नहीं करना चाहिए।”

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