केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से उन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांगों पर विचार-विमर्श पूरा करने के लिए समय मांगा है, जहां उनकी संख्या दूसरों से कम हो गई है।
केंद्र ने कहा है कि यह मामला काफी संवेदनशील है और इसके दूरगामी प्रभाव होंगे।
अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय और अन्य की याचिकाओं के जवाब में सोमवार को दायर अपने चौथे हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा कि उसे इस मुद्दे पर अब तक 14 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों से टिप्पणियां मिली हैं।
याचिकाकर्ताओं ने परामर्श प्रक्रिया की कानूनी पवित्रता पर संदेह व्यक्त करते हुए कहा है कि इस मामले में फैसले के बाद केंद्र किसी को भी अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित नहीं कर सकता है।
सोमवार के दायर हलफनामे में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ परामर्श बैठकें की हैं।
इन बैठकों में गृह मंत्रालय, कानूनी मामलों के विभाग- कानून और न्याय मंत्रालय, उच्च शिक्षा विभाग- शिक्षा मंत्रालय, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान आयोग (NCMEI) के प्रतिनिधि भी शामिल हुए।
केंद्र ने कहा, “कुछ राज्य सरकारों / केंद्र शासित प्रदेशों ने इस मामले पर अपनी राय बनाने से पहले सभी हितधारकों के साथ व्यापक परामर्श करने के लिए अतिरिक्त समय का अनुरोध किया है।
राज्य सरकारों से अनुरोध किया गया था कि तात्कालिकता को देखते हुए इस मामले में उन्हें तेजी से कार्य करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि राज्य सरकार के विचारों को अंतिम रूप दिया गया है और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को जल्द से जल्द अवगत कराया गया है।”
केंद्र ने कहा, “14 राज्य सरकारें जैसे पंजाब, मिजोरम, मेघालय, मणिपुर, ओडिशा, उत्तराखंड, नागालैंड, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, गोवा, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और 3 केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख, दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव और चंडीगढ़ ने अपने विचार प्रस्तुत किए हैं।”
केंद्र ने कहा, “चूंकि मामला संवेदनशील है और इसके दूरगामी प्रभाव होंगे। राज्य सरकारों / केंद्र शासित प्रदेशों और हितधारकों को सक्षम करने के लिए और अधिक समय देने पर विचार करने की आवश्यक्ता है।” कोर्ट ने केंद्र सरकार को छह महीने का समय दिया है।
उपाध्याय की याचिका में कहा गया है कि 2002 के टीएमए पई फैसले के बाद 23 अक्टूबर, 1993 की अधिसूचना के द्वारा केंद्र सरकार ने मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों, बौद्धों और पारसियों को अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित किया था। 2014 में केंद्र सरकार ने जैनियों को इस सूची में जोड़ा था।