सुप्रीम कोर्ट ने जन प्रतिनिधित्व कानून के एक प्रावधान की वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा है।
चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस. रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने गृह मंत्रालय (एमएचए) व इलेक्शन कमीशन को नोटिस जारी किया।
सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान याचिका पर वकील जोहेब हुसैन दलीलें पेश कर रहे थे।
जनहित याचिका राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के छात्र आदित्य प्रसन्ना भट्टाचार्य की ओर से दायर की गई है।
इसमें जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 62 (5) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है, जो जेल में बंद व्यक्ति को चुनाव में वोट डालने से रोकती है। पीठ ने जनहित याचिका पर आगे की सुनवाई 29 दिसंबर को तय की है।
क्या है जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 62 (5)
जन प्रतिनिधित्व कानून,1951 की धारा 62 (5) के अनुसार, न्यायिक आदेश से जेल में बंद या पुलिस कस्टडी में होने वाले व्यक्ति को वोट देने का अधिकार नहीं है।
ऐसे व्यक्ति वोट तभी दे सकते हैं जब वह निषेधाज्ञा में निरुद्ध किए गए हों। निरुद्ध व्यक्ति को ही चुनाव में वोट डालने की अनुमति मिलती है।
दिल्ली हाई कोर्ट भी कर चुका है इस पर टिप्पणी
2019 में दिल्ली हाई कोर्ट ने प्रवीण कुमार चौधरी बनाम चुनाव आयोग मामले में कहा था कि मतदान का अधिकार कानूनी अधिकार है और कैदी चुनाव में वोट नहीं कर सकता।
कोर्ट ने यह माना वोट का अधिकार लोकतंत्र का मूल है, लेकिन कुछ आधारों पर इस अधिकार से वंचित किया जा सकता है। यह कहकर कोर्ट ने धारा 62(5) को उचित ठहराया।