बीजेपी की पांच सदस्यीय कमिटी ने पश्चिम बंगाल में ‘नाबन्ना चलो’ अभियान के दौरान हुई हिंसा की रिपोर्ट पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को सौंप दी है।
इस हिंसा में बीजेपी के कई कार्यकर्ता गंभीर रूप से घायल हो गए थे, इस कमिटी का नेतृत्व उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी और राज्यसभा सांसद ब्रिज लाल ने किया।
उन्होंने अनुशंसा की कि पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा की जांच सीबीआई से कराई जाए।
बीजेपी की इस कमिटी ने इस हिंसा के दौरान पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठाए। इसने आरोप लगाया कि हिंसा में सरकार और पुलिस की भी मिलीभगत थी। कमिटी का कहना है कि नाबन्ना हिंसा की निष्पक्ष जांच संभव नहीं, क्योंकि पुलिस अपने राजनीतिक आकाओं से मिली हुई थी। पश्चिम बंगाल में तृण मूल कांग्रेस की अध्यक्ष और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी गृह मंत्री भी हैं। इसलिए इस हिंसा की जांच सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसी से करानी चाहिए।
कमिटी ने इस बात की अनुशंसा भी की है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन को भी कोलकाता जाकर पुलिस और टीएमसी के गुंडों की हिंसा और बर्बरता देखनी चाहिए। कमिटी ने यहां तक कहा कि पुलिसकर्मियों ने चेहरा ढंककर, बैच हटाकर, सिविल ड्रेस पहनकर गुंडों के साथ हिंसा की। हिंसा के दौरान जिला प्रशासन ने विपक्ष की आवाज को दबाने के लिए संतरागाछी और हावड़ा मैदान में धारा 144 लागू कर दी थी। हालांकि, लाल बाजार और एमजी रोड पर इस धारा का कोई प्रभाव नहीं हुआ और वहां सरकार समर्थित अभूतपूर्व हिंसा हुई।
750 लोग घायल
कमिटी का दावा है कि इस हिंसा में करीब 750 नागरिक और बीजेपी कार्यकर्ता घायल हुए। इनमें से ज्यादातर घायलों को न केवल पश्चिम बंगाल बल्कि पड़ोसी राज्यों के अस्पतालों के आईसीयू में भर्ती किया गया। हिंसा के पहले और बाद में पुलिस ने मनमाने तरीके से 550 लोगों को गिरफ्तार किया और 60 कार्यकर्ता अभी भी पुलिस हिरासत में हैं।
कमिटी का कहना है कि 45 कार्यकर्ताओं का अभी तक कुछ पता नहीं चल रहा।
कमिटी ने टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी के बयान की निंदा की। बनर्जी ने उस वक्त कहा था कि अगर वह मौके पर होते तो प्रदर्शनकारियों के सिर में गोली मारते।