सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के मुआवज़े से जुड़ी एक याचिका पर रुख स्पष्ट करने के लिए कहा है।
शीर्ष अदालत ने मंगलवार को सरकार से पूछा कि क्या वह वर्ष 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए अमेरिका में स्थित यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (यूसीसी) की उत्तराधिकारी कंपनियों से अतिरिक्त धनराशि के रूप में 7,844 करोड़ रुपये की मांग करने वाली अपनी उपचारत्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटिशन) पर आगे बढ़ना चाहती है।
जस्टिस एसके कौल की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को इस संबंध में केंद्र सरकार से निर्देश लेने के लिए कहा और 11 अक्टूबर को मामले की अगली सुनवाई तय की है।
इस बेंच जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस एएस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी भी शामिल थे।
सुप्रीम कोर्ट की इस पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा, ‘सरकार को अपना रुख तय करना होगा कि वह उपचारात्मक याचिका पर आगे बढ़ेगी या नहीं।’
वहीं पीड़ितों की ओर से पेश वकील करुणा नंदी ने कहा कि अदालत को सरकार के फैसले से परे प्रभावित पक्षों को सुनना चाहिए।
पीड़ितों के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने कोर्ट से कहा कि प्रभावित लोगों की संख्या पांच गुना बढ़ गई है और सुनवाई शुरू होनी चाहिए।
गौरतलब है कि 2 और 3 दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात को यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीली ‘मिथाइल आइसोसाइनेट’ गैस रिसने के बाद 3,000 से अधिक लोग मारे गए थे और 1।02 लाख से अधिक प्रभावित हुए थे।
इस मामले में अब ‘डॉव केमिकल्स’ के स्वामित्व वाली यूसीसी ने भोपाल गैस त्रासदी मामले में 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर (1989 में निपटान के समय 715 करोड़ रुपये) का मुआवजा दिया दिया था।
इस त्रासदी में जिन लोगों की जान बची वे जहरीली गैस के रिसाव के कारण बीमारियों का शिकार हो गए। वे पर्याप्त मुआवजे और उचित चिकित्सा उपचार के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं।
इस संबंध केंद्र ने मुआवजा राशि बढ़ाने के लिए दिसंबर 2010 में शीर्ष अदालत में सुधारात्मक याचिका दाखिल की थी।
भोपाल की एक अदालत ने इस मामले में 7 जून 2010 को यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) के सात अधिकारियों को दो साल के कारावास की सजा सुनाई थी।
इस मामले में यूसीसी के तत्कालीन अध्यक्ष वारेन एंडरसन मुख्य आरोपी थे, लेकिन मुकदमे के लिए उपस्थित नहीं हुए थे। 1 फरवरी 1992 को भोपाल सीजेएम अदालत ने उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया था।
भोपाल की अदालतों ने 1992 और 2009 में दो बार एंडरसन के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया था। सितंबर 2014 में उनकी मौत हो गई थी।