देशभर की फास्ट ट्रैक अदालतों (Fast Track Courts) में महिलाओं, बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के खिलाफ जघन्य अपराधों के लंबित 13.81 लाख मामलों में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत से अधिक है।
कानून मंत्री किरेन रीजीजू द्वारा उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के साथ साझा किये गये आंकड़ों में यह जानकारी दी गयी है।
उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के साथ साझा किए गए ब्योरे के अनुसार, उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की फास्ट-ट्रैक अदालतों में 9।33 लाख से अधिक मामले लंबित हैं, जबकि महाराष्ट्र में यह आंकड़ा 1.4 लाख से अधिक मामलों का है।
ब्योरे में कहा गया है कि तमिलनाडु की फास्ट ट्रैक अदालतों में 1.06 लाख मामले, पश्चिम बंगाल में 71,260 और तेलंगाना में 12,538 मामले लंबित हैं।
रीजीजू ने दो सितंबर को लिखे पत्र में कहा है, ‘‘विश्लेषण करने पर यह पता चलता है कि जहां (फास्ट ट्रैक अदालतों में) 88,000 (लगभग) मासिक नये मामले दर्ज किये जाते हैं, वहीं निपटाये गये मामलों की संख्या 35,000 है, जिससे लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है।”
फास्ट-ट्रैक विशेष अदालतों (एफटीएससी) में दुष्कर्म के मामलों के अलावा बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम से जुड़े 60,000 से अधिक मामले लंबित हैं और इसमें भी उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है।
महाराष्ट्र की एफटीएससी अदालतों में 43,000 मामले लंबित हैं।
ये अदालतें बलात्कार और पॉक्सो अधिनियम से संबंधित मुकदमों के त्वरित निपटारे के लिए केंद्र प्रायोजित योजना के तहत गठित की गयी हैं।
पश्चिम बंगाल में ऐसे लंबित मुकदमों की संख्या 35,653 हैं, जबकि 22,592 मामलों के साथ बिहार दूसरे और 20,037 मामलों के साथ तमिलनाडु तीसरे स्थान पर है।
ओडिशा में ऐसे 19,214 मामले, राजस्थान में 18,077, केरल में 14,392, गुजरात में 12,347 और तेलंगाना में 12,248 मामले लंबित हैं।
देशभर के 28 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की फास्ट ट्रैक विशेष अदालतों में 3,28,556 मामले लंबित हैं।री
जीजू ने उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को लिखे पत्र में कहा है, ‘‘विश्लेषण करने पर, यह पाया गया है कि प्रत्येक माह करीब 10,000 नये मामले दर्ज होते हैं और करीब 6,000 मामलों का ही निपटारा किया जाता है, इसलिए लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है।”