इस समय कांग्रेस पार्टी अपने इतिहास के सबसे बड़े संकट का सामना कर रही है।
1951 के बाद ऐसी दुर्दशा कभी नहीं हुई जो कि आज है, संकट के इस समय में वरिष्ठ नेता भी पार्टी का साथ छोड़ रहे हैं।
2019 में लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद से कांग्रेस एक भी विधानसभा चुनाव अपने दम पर नहीं जीत पाई। वहीं 1984 में इसी पार्टी को 400 से ज्यादा लोकसभा सीटें हासिल हुई थीं। आज हालात ये हैं कि राज्यसभा सांसद मिलाकर कांग्रेस के पास केवल 84 सदस्य हैं।
इस समय पूरे देश में कांग्रेस के पास कुल 695 विधायक हैं वहीं भाजपा की संख्या दोगुनी है। हाल ही में उत्तर प्रदेश, गोवा, पंजाब, उत्तराखंड और मणिपुर में भी चुनाव हुए लेकिन कांग्रेस एक भी राज्य में जीत दर्ज नहीं कर पाई।
अब पार्टी को मजबूत करने के लिए राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा शुरू कर रहे हैं और दूसरी तरफ पार्टी में अंतरकलह तेज हो रही है। पत्रकार राशिद किदवई के साथ मिलकर सुनेत्रा चौधरी उन पांच कारणों को बता रही हैं जिनकी वजह से कांग्रेस का पतन होता जा रहा है।
1- मानव संसाधन की समस्या
पार्टी में इन दिनों अनुभव और प्रतिभा को संभालना मुश्किल हो रहा है। गुलाम नबी आजाद, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुश्मिता देव, जितेन प्रसाद, आरपीएन, सिंह, कुलदीप बिश्नोई और कपिल सिब्बल जैसे मझे हुए नेताओं की एक लंबी लिस्ट है जिनका कांग्रेस से मोहभंग हो चुका है।
कांग्रेस अपने नेताओं को सही स्थान और तवज्जो देने में नाकामयाब नजर आ रही है। बात करते हैं जितिन प्रसाद की तो वह यूपी में भाजपा सरकार में मंत्री हैं। वहीं कांग्रेस में 2014 से 2021 तक वे गुमनाम हो रहे थे।
भाजपा ने जितिन प्रसाद को ब्राह्मण वोटों की जिम्मेदारी दी थी। सवाल ये उठता है कि जिन्हें कांग्रेस में तवज्जो नहीं मिलती वे दूसरी पार्टियों में कैसे कमाल करने लगते हैं? इसका मतलब यही है कि पार्टी में मानव संसाधन का प्रबंधन ठीक से नहीं हो पा रहा है।
कांग्रेस नेताओं का गुस्सा और असंतुष्टि अब बहुत ही आसानी से बाहर आ जाती है। इसके मतलब यह है कि पार्टी में कोई सुनने वाला नहीं है। व रना इसी कांग्रेस में एक समय था कि नेताओं की असंतुष्टि का समाधान अंदर ही निकाला जाता था।
2- नेतृत्व की समस्या
कुलदीप बिश्नोई ने जब कांग्रेस छोड़ी तो उन्होंने कहा कि वह राहुल गांधी के कॉल का इंतजार कर रहे थे। इसी तरह हार्दिक पटेल ने भी कांग्रेस छोड़ते हुए कहा था। अब सवाल यह है कि कांग्रेस की कमान जब सोनिया गांधी संभाल रही हैं तो ये लोग राहुल गांधी के फोन का इंतजार क्यों कर रहे थे? राहुल गांधी दो साल के लिए कांग्रेस के अध्यक्ष थे और 2019 के आम चुनाव में करारी हार के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया था।
अब देखने को यह मिल रहा है कि सक्षम नेतृत्व ना होने की वजह से अपने ही नेता कट जाते हैं। असम में राज्यसभा सीट के चुनाव में यही देखने को मिला। कांग्रेस के पास नंबर होने के बावजूद क्रॉसवोटिंग हुई और रिपुन बोरा चुनाव हार गए।
अब कांग्रेस ने कहा है कि 17 अक्टूबर को अध्यक्ष के लिए चुनाव होगा। हमेशा यह सवाल उठता है कि यह एक परिवार की पार्टी बनकर रह गई है। ऐसे में चुनौती यह भी है कि कैसे परिवार से बाहर के किसी शख्स को कमान दी जाती है और वह कौन होगा जो कांटों का ताज पहनने को तैयार होगा। अभी तो बात यहीं अटकी नजर आ रही है कि राहुल गांधी को दोबारा अध्यक्ष बनाने के लिए मान-मनव्वल का खेल चल रहा है।
3-आधुनिक तरीकों से दूरी
प्रशांत किशोर ने कहा था कि पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन 170 लोगों को टिकट दिया था जो कि तीन बार पहले ही चुनाव हार चुके थे। वे ऐसे प्रत्याशी थे जो जनता के बीच लोकप्रिय नहीं थे।
कहा जा सकता है कि कांग्रेस पार्टी जनता, कार्यकर्ताओं का मूड और माहौल को समझने में भूल कर देती है। कांग्रेस ने रणनीतिकार हायर भी किया तो यह जरूरी नहीं है कि नेतृत्व उनकी बात माने।
4- कम्युनिकेशन गैप
किसी भी राजनीतिक दल के लिए अच्छा कम्युनिकेशन बहुत जरूरी होता है। बात करें कांग्रेस की तो उसका कम्युनिकेशन बहुत ही खराब है। पार्टी के नेताओं को लेकर कोई विवाद फैलता है तो कांग्रेस के लिए उसे संभालना मुश्किल हो जाता है।
ईद के दौरान जब राहुल गांधी विदेश यात्रा पर थे तब उनका एक वीडियो सामने आ गया। आरोप लगाया गया कि वह किसी क्लब में हैं। वहीं कांग्रेस ने कह दिया कि वह शादी में गए थे। जबकि साफ पता चल रहा था कि यह शादी का वेन्यू नहीं था।
एक तरफ नरेंद्र मोदी लगातार बिना छुट्टी लिए काम करते हैं तो दूसरी तरफ राहुल गांधी महत्वपूर्ण निर्णय के समय ही छुट्टी बिताने विदेश चले जाते हैं। डॉ. मनमोहन सिंह भी लगातार काम करते थे और छुट्टियां नहीं लेते थे। लेकिन अब पार्टी में ऐसी बात नहीं दिखायी देती है।
5- फंडिंग
पार्टी को मिलने वाला फंड भी अब लगातार कम हो रहा है। चुनाव लड़ने के लिए धन की जरूरत होती है और अब पार्टी बड़ी समस्या से जूझ रही है। पार्टी का 91 फीसदी फंड कॉर्पोरेट से आता है।
एडीआर के मुताबिक 2019-20 में कांग्रेस को केवल 133 करोड़ चंदा मिला था वहीं भाजपा को इस अवधि में 720 करोड़ रुपये मिले ते। भाजपा के पास 2025 कॉर्पोरेट डोनर हैं वहीं कांग्रेस के पास सिर्फ 720 हैं।