कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को 5 पन्नों का त्यागपत्र लिखकर गुलाम नबी आजाद पार्टी से अलग हो गए।
इस पूरे सियासी घटनाक्रम में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पार्टी के पुराने साथी से खासे नजर आए।
इतना ही नहीं उन्होंने आजाद को संजय गांधी का ‘चापलूस’ बता दिया था। हालांकि, अगर कांग्रेस का इतिहास देखें, तो दोनों राजनेताओं का सफर लगभग एक जैसा रहा है।
वहीं, अगर इसकी तुलना मौजूदा हाल से की जाए तो नजर आता है कि संजय और राजीव गांधी के समय में दो नेता मिले और राहुल गांधी के युग में राहें अलग हो गईं।
1970 के समय दोनों नेताओं ने राजनीतिक पारी की शुरुआत छात्र नेता के तौर पर की थी। बाद में दोनों उपमंत्री, केंद्रीय मंत्री और अपने-अपने राज्यों में मुख्यमंत्री भी बने।
कहा जाता है कि एक ओर जहां आजाद को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी का सहयोग मिला। वहीं, गहलोत ने भी संजय के बड़े भाई राजीव का भरोसा हासिल कर लिया था।
70 के दशक तक संजय को पूर्व पीएम का सियासी उत्तराधिकारी माना जाता था और राजीव का राजनीति में आना नहीं हुआ था।
उस दौरान आजाद अन्य युवा नेताओं अंबिका सोनी और कमल नाथ के साथ संजय के करीबियों में शामिल हो गए। साल 1975 से 77 के बीच वह जम्मू और कश्मीर युवा कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे।
1977-80 में ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी यानी AICC के महासचिव रहे। रिपोर्ट के अनुसार, 1980 में संजय अपनी मां इंदिरा के साथ आजाद की शादी समारोह में भी शामिल हुए थे। उसी साल आजाद यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और महाराष्ट्र की वाशिम सीट से लोकसभा चुनाव जीता।