नीतीश की नई सरकार बनते ही भाजपा के खिलाफ मुखर होने लगे क्षेत्रीय दल: NDA गठबंधन टूटा…

नीतीश कुमार के पाला बदलते ही विपक्षी यकायक भाजपा के खिलाफ मुखर होने लगे हैं।

हालांकि हमेशा की तरह इनमें एका होना बहुत मुश्किल है।

दरअसल, भाजपा और मोदी के खिलाफ बोल-बोलकर ये दल भाजपा के ही वोटों की वृद्धि करते फिरते हैं। हर कोई जानता है कि इनमें एका नहीं हो सकता। क्योंकि सिर्फ बातें होती हैं। वर्षों से।

शरद पवार कह रहे हैं कि भाजपा छोटे दलों को खा रही है। पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा तो नीतीश को प्रधानमंत्री पद के लिए लालटेन दिखाने से नहीं चूके। उन्होंने कहा- जनता दल क्या नहीं कर सकता। उसने तीन-तीन प्रधानमंत्री दिए हैं।

वैसे जनता दल ने चार प्रधानमंत्री दिए हैं। देवगौड़ा या तो खुद को भूल गए या वीपी सिंह को। पहले वीपी, दूसरे चंद्रशेखर, तीसरे गुजराल और चौथे खुद देवगौड़ा। ये बात और है कि इनमें से कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया।

उधर तेजस्वी यादव तो बिफर ही गए। उन्होंने कहा- भाजपा का आजकल एक ही सूत्र है- जो डरे, उसे डराओ और जो बिके, उसे खरीदो! तेजस्वी जी को ये कौन समझाए कि राजनीति में ये सब कब नहीं हुआ? और खरीदने पर इतनी ही आपत्ति है तो किसी भी दल का विधायक या सांसद या पार्षद बिकता ही क्यों है?

जनता तो उस प्रतिनिधि को जिस दल ने टिकट दिया, उसी का मानकर वोट देती है, फिर ये प्रतिनिधि पाला बदलकर इधर-उधर क्यों चले जाते हैं? जहां तक नीतीश कुमार का सवाल है उन्होंने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी से तो तौबा कर ली लेकिन मोदी पर तंज जरूर कसा।

जब उनसे पूछा गया कि भाजपा कह रही है कि आपकी सरकार ज्यादा नहीं चलेगी तो जवाब में नीतीश ने कहा- जो 2014 में आए हैं वे 2024 में भी आएंगे, इसकी क्या गारंटी है? कुल मिलाकर निगाह तो है नीतीश की प्रधानमंत्री की कुर्सी पर, लेकिन वहां कोई सहारा देने वाला नहीं है।

गलती नीतीश की नहीं है। विपक्षी दलों में एकता होती ही नहीं है। खुद भाजपा भी जब विपक्ष में हुआ करती थी, तब भी कांग्रेस के खिलाफ एकता की बातें ही होती थीं, आपसी झगड़ों के चक्कर में एकता दूर की कौड़ी ही रहती थी। अभी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में ही विपक्षी एकता की कलई खुल चुकी है।

खैर, इस मामले में केजरीवाल का कोई जवाब नहीं। वे मोदी के खिलाफ नहीं बोलते। उन्हें पता है इससे भाजपा और मोदी की ही पब्लिसिटी होगी। वे बार-बार गुजरात जाते हैं और फ्री में कुछ न कुछ बांटने का वादा करके दिल्ली लौट आते हैं।

रोजगार गारंटी, बेरोजगारों को पैसा देने के वादे के बाद वे इस बार गुजरात की गैर कामकाजी महिलाओं के खाते में हजार रुपए डालने का वादा कर आए हैं। ये बात और है कि चुनाव पूर्व इस फ्री की बंदरबांट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है।

लेकिन जब तक कोई फैसला नहीं आता, केजरीवाल को कौन रोक सकता है? प्रधानमंत्री ने तो इस पर व्यंग्य भी किया। उन्होंने केजरीवाल का नाम लिए बगैर कहा- कल को कोई पंट्रोल भी फ्री में देने लगे तो हैरत नहीं होगी।

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