जाने ऐसा क्या हो गया कि बीजेपी-जद(यू) के रिश्ते 20 महीने में बदतर हो गए…

ऐसा क्या हो गया कि 20 महीनों में बीजेपी (BJP) और जद (यू)   (JDU) के रिश्ते दरक गए, जिस प्रतिबद्धता के साथ बीजेपी और नीतीश (Chief Minister Nitish Kumar) ने हाथ मिलाया था, वो गर्माहट धीरे-धीरे में तल्खी में बदल गई।

जद (यू) बीजेपी के ऊपर हमलावर है लेकिन बीजेपी ने पिछले 24 घंटों में गठबंधन को लेकर सिर्फ जद (यू) ही सवाल कर रहा है बाकि सभी दल एक तरह से चुप बैठे हैं।

बीजेपी ने अपने सभी बयानवीरों को कह दिया कि आप सभी मौन धारण कर लीजिये, राजद की तरफ से भी अपने सभी नेताओं को चुप रहने की हिदायत दी गई है।

सबसे पहले गठबंधन को लेकर दोनों के बीच कोई कॉमन एजेंडा तैयार नहीं किया गया, जिसकी छोटे दलों की तरफ से लगातार मांग कि गई।

बीजेपी का आक्रामक एजेंडा
दूसरा, बीजेपी अपने कोर एजेंडे के साथ आक्रामक तरीके से आगे बढ़ती गई , वहीं नीतीश कुमार असहाय देखते रहे. बीजेपी के युवा मंत्री समय-समय पर आक्रामक बयान देकर खाई को और बड़ी करते रहे।

77 सीटाें के साथ बीजेपी, नीतीश कुमार के अंदर रहकर काम करे, ये बीजेपी के गर्मपंथी नेताओं को स्वीकार नहीं रहा, जनसंख्या नियंत्रण को लेकर बीजेपी ने अपनी ही सरकार पर दवाब बनाया और इस तरह प्रचारित किया जिससे नीतीश कुमार असहज हुए।

बढ़ते अपराध से नीतीश की छवि धूमिल हुई 
पिछले कुछ महीनों में अपराध की बढ़ती घटनाओं ने नीतीश कुमार को छवि को दागदार किया, खासकर नीतीश सरकार ने जिस तरह से आतंकी घटनाओं की जांच उसको लेकर सरकार के ऊपर सवाल उठा, क्योंकि गृह विभाग नीतीश कुमार खुद देखते हैं।

एनआईए ने पटना के फुलवारी शरीफ समेत प्रदेश एक अलग-अलग जिलों में पीएफआई के लिप्त होने की साजिश को उजागर किया, इससे ये संदेश गया कि नीतीश सरकार देश विरोधी घटनाओं को लेकर आखिर चुप क्यों बैठी रही? बिहार धीरे-धीरे आतंकियों का स्लीपर सेल बन गया और बिहार पुलिस हाथ पर हाथ धरी बैठी रही।

हालांकि ये राजनीतिक मुद्दे नहीं देश की सुरक्षा से जुड़े हुए मुद्दे थे, फिर भी इसका राजनीतिक आशय तो निकाला ही जाना था, ये समझ लीजिये कि बिहार में कानून व्यवस्था और जंगल राज खत्म करने के लिए ही नीतीश कुमार को मेंडेट मिला था, और वही उनकी सबसे बड़ी पूंजी थी, जिस पर एनआईए की एंट्री के बाद बट्टा लगा।

स्पीकर विजय सिन्हा और सीएम नीतीश के बीच कहा सुनी
हालांकि, ये बात पुरानी हो गई, लेकिन इसकी गूंज अब भी बिहार की राजनीति में मौजूद है, तल्खी की एक बहुत बड़ी वजह ये रही कि विधान सभा अध्यक्ष ने नीतीश को अपनी ही भाषा में जवाब दिया, जिसकी शायद नीतीश कुमार ने कल्पना नहीं की होगी।

विजय सिन्हा के बयानों को बीजेपी के काडर ने सकारात्मक तरीके से लिया लेकिन जद(यू) और बीजेपी के रिश्ते में हमेशा हमेशा के लिए गांठ पड़ गई, दोनों ही पार्टियों की तरफ से संबंध को सामनी बनाने की भरसक कोशिश हुई लेकिन पहले वाली बात नहीं रही।

बीजेपी मंत्रियों की सुनी नहीं जाती, इसकी शिकायत आम हुई
सरकार में रहते हुए भी बीजेपी के तमाम मंत्री सरकार से नाराज रहे, शाहनवाज़ हुसैन और मंगल पांडे के अलावा किसी भी मंत्री के साथ नीतीश कुमार ज़्यादा सहज नहीं नज़र आए।

भू-राजस्व मंत्री रामसूरत राय ने तो तबादलों को लेकर बवाल खड़ा कर दिया जब उनके द्वारा दिए गए तबादलों की लिस्ट को सीएम ऑफिस रद्द कर दिया गया, रामसूरत ने इस्तीफे की पेशकश करके सरकार की कार्यप्रणाली पर ही सवाल खड़े कर दिए।

बीजेपी के बढ़ते प्रभाव से जद (यू) में बेचैनी
बीजेपी पिछले 6 महीनों से अपना विस्तार करने में लगी हुई है. हर ज़िले में बीजेपी के मंत्री और बड़े नेता जाकर जनसम्पर्क अभियान चला रहे हैं।

अपनी तरफ से बीजेपी ने 200 विधान सभा सीटों पर तैयारी शुरू कर दी, जिसके लिए जद (यू) से कोई सहमति नहीं ली गई।

हालांकि अपनी कार्यकारिणी के बाद बीजेपी ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में चुनाव लड़ने की बात कही लेकिन जद (यू) ने इस घोषणा पर सवाल ही खड़ा दिया।

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है, इसके लिए वार्ता 24 उत्तरदायी नहीं है।)

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