पाकिस्तान अपनी आदत से है मजबूर, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया जाना, ऐसा लगता है कि पाकिस्तान को बड़ा घाव दे गया है।
वह इसे भुलाने को तैयार नहीं है, कई अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म पर यह मुद्दा रखने के बाद जब कामयाबी नहीं मिली तो अब यूरोपीय देशों को लालच देकर वह भारत के खिलाफ साजिश रचने की कोशिश कर रहा है।
पाकिस्तान ने स्वीडन के कुछ राजनेताओं को लालच दिया है कि अगर वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर का मुद्दा उठाएंगे तो वह उन्हें NATO की सदस्यता दिलाने में मदद करेगा।
5 अगस्त को यौम-ए-इस्तेहाल मनाता है पाकिस्तान
पाकिस्तान 5 अगस्त को यौम-ए-इस्तेहाल मनाता है जिसका मतलब होता है अत्याचार का दिवस। इसी दिन भारत ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया था। इस बार पाकिस्तान ने कुछ अलग ही तैयारी कर रखी है। उसने स्वीडन के नेताओं के सामने ऑफर रखा कि NATO में उसे शामिल करने के लिए वह टर्की से बात करेगा। लेकिन उन्हें कश्मीर के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाना होगा।
स्वीडन और फिनलैंड बनना चाहते हैं NATO के सदस्य
स्वीडन और फिनलैंड ने NATO की सदस्यता के लिए आवेदन किया है। रूस और यूक्रेन के बीच जंग शुरू होने के बाद ही दोनों देशों ने इसका आवेदन किया था। हालांकि तुर्की जो कि पहले से इस सैन्य संगठन का सदस्य है, इन देशों की सदस्यता का विरोध कर रहा है। तुर्की का कहना है कि ये देश कुर्दिश ग्रुप आतंकी संगठन का समर्थन करते हैं। जब दोनों देशों ने तुर्की से वादा किया कि वे संदिग्ध आतंकियों के प्रत्यर्पण में सहयोग करेंगे तो वह भी इनकी सदस्यता के लिए तैयार हो गया था। लेकिन फिर बात बिगड़ गई।
क्यों विरोध कर रहा है तुर्की
तुर्की ने कहा है कि स्वीडन और फिनलैंड ने आतंकियों के प्रत्यर्पण का वादा पूरा नहीं किया और इसलिए वह इनकी सदस्यता का विरोध करेगा। अब पाकिस्तान के कुछ लोग यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके तुर्की से अच्छे संबंध हैं और इस मामले में वे मदद कर सकते हैं। लोगों का कहना हैकि यूरोप के देशों में 5 अगस्त को कश्मीर मुद्दे को लेकर जो भी कार्यक्रम आयोजित किए गए उनके पीछे पाकिस्तानी लोग और संगठन ही थे। इस तरह मुद्दा फिर पाकिस्तान तक ही सिमटकर रह गया। इसे बाकी देशों के लोगों का समर्थन नहीं मिला।
स्टॉकहोम में पाकिस्तानी दूतावास को भेजे गए एक पत्र में इस्लामाबाद के विदेश मंत्रालय ने कई निर्देश दिए थे। इसमें यह भी कहा गया था कि लगातार स्वीडिश स्पीकर और सांसदों से संपर्क बनाया जाए जिससे की वहां की संसद में कश्मीर कोलेकर चर्चा शुरू हो। इसके अलावा इसमें इस्लाबाद के संगठन कश्मीर इंस्टिट्यूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशन का भी हाथ बताया जा रहा है।