partially successful: सेंसर फेल होने के कारण रास्ता भटके दोनों उपग्रह, ISRO ने SSLV-D1 मिशन को बताया ‘आंशिक सफल’…

बेंगलुरुः इसरो ने रविवार को बताया कि नव विकसित लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) की पहली उड़ान को आंशिक सफलता कहा जा सकता है।

जिसमें 3 ठोस ईंधन आधारित प्रणोदन चरण (Propulsion Stages) सामान्य रूप से काम कर रहे हैं।

लेकिन एसएसएलवी द्वारा लाॅन्च किए गए दोनों उपग्रह सेंसर की विफलता के कारण गलत कक्षा में प्रवेश कर रहे हैं। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने अपने एक बयान में कहा, ‘एसएसएलवी-डी1 ने उपग्रहों को 356 किमी वृत्ताकार कक्षा के बजाय 356 किमी x 76 किमी अण्डाकार कक्षा में स्थापित किया उपग्रह अब प्रयोग करने योग्य नहीं हैं।

समस्या की यथोचित पहचान की गई है। सेंसर फेल होने के कारण उपग्रहों में यह विचलन देखा जा रहा है एक समिति इस संबंध में विश्लेषण और फिर अपनी सिफारिशें देगी उन सिफारिशों के कार्यान्वयन के लिए ISRO जल्द ही SSLV-D2 के साथ वापस आएगा।’

राॅकेट ने पहले तीन चरणों में शानदार प्रदर्शन किया: इसरो चीफ
रविवार दोपहर एक वीडियो बयान में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा, ‘पहले चरण के साथ एसएसएलवी-डी1 ने शानदार उड़ान भरी और बाद में स्टेज-2 और स्टेज-3 ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया।

आखिरकार जब SSLV-D1 356 किमी की ऊंचाई पर पृथ्वी की कक्षा में पहुंचा तो दोनों उपग्रह इससे अलग हो गए हालांकि, बाद में हमने उपग्रहों को कक्षा में स्थापित करने में एक विसंगति देखी।’

इसरो अध्यक्ष ने आगे बताया कि जब किसी उपग्रह को ऐसी कक्षा में रखा जाता है, तो वे लंबे समय तक वहां बने नहीं रह सकते हैं और गिर जाते हैं एस सोमनाथ ने कहा, उपग्रह पहले ही निर्धारित कक्षा से नीचे आ चुके हैं और वे अब प्रयोग करने योग्य नहीं हैं।

उन्होंने कहा कि इस मुद्दे की यथोचित पहचान की गई है, लेकिन इसका गहन विश्लेषण किया जाएगा उन्होंने कहा कि इस मुद्दे की यथोचित पहचान की गई है, लेकिन इसका गहन विश्लेषण किया जाएगा इसरो प्रमुख ने कहा कि विशेषज्ञ पैनल की जो भी सिफारिशें होंगी, उन्हें बिना देरी के लागू किया जाएगा।

SSLV-D1 में जो भी नई तकनीक इस्तेमाल हुई थी, सफल रही

उन्होंने SSLV-D1 को लेकर कहा कि इस रॉकेट में शामिल किए गए अन्य नई चीजें ने वास्तव में अच्छा प्रदर्शन किया, जिसमें प्रपल्शन स्टेजेज, पूरा हार्डवेयर, इसका एयरोडायनेमिक डिजाइन, नई पीढ़ी और कम लागत वाले इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम, कंट्रोल सिस्टम, नया सेपरेशन सिस्टम, रॉकेट का पूरा आर्किटेक्चर, सब कुछ शामिल है हम इससे खुश हैं।

एस सोमनाथ ने कहा, हमें उम्मीद है कि कुछ छोटे सुधारों और पर्याप्त संख्या में परीक्षणों के माध्यम से उन सुधारों को लागू करने और उनका सत्यापन करने के बाद, हम जल्द ही SSLV-D 2 के साथ अपनी अगली उड़ान के लिए वापस आएंगे और हमें उम्मीद है।

कि SSLV की दूसरी उड़ान के साथ हम यह साबित करने में पूरी तरह से सफल हो जाएंगे कि यह भारत और पूरी दुनिया के व्यावसायिक उपयोग के लिए उपग्रहों को इच्छित कक्षाओं में स्थापित कर सकता है।

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