कभी इकलौते बेटे की मौत के गम में सबकुछ भुला चुके किसान पुत्र जगदीप धनखड़ आज देश के नए उपराष्ट्रपति बन चुके हैं।
उन्होंने विपक्ष के उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को 346 मतों के भारी अंतर से शिकस्त दी, यह साल 1994 की बात है जब 14 साल की उम्र में बेटे की मौत ने धनखड़ को झकझोर दिया था।
ये बात है देश के 14वें उपराष्ट्रपति की, जो राजस्थान के झूंझणूं में छोटे से गांव किठाना में जन्मे लेकिन, हमेशा आसमान की तरफ निगाहें रखीं। सुप्रीम कोर्ट के वकील से संसद और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल से लेकर उपराष्ट्रपति बनने तक का सफर पूरा किया।
जगदीप धनखड़ देश के 14वें उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुए हैं। उन्हें कुल डाले गए 725 सांसदों में से 528 ने पक्ष में वोट दिया। जबकि विपक्ष के उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा महज 182 वोट ही पा सकीं।
एनडीए का उम्मीदवार चुनते वक्त प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि जगदीप धनखड़ को संविधान का उत्कृष्ट ज्ञान है और वे विधायी मामलों से अच्छी तरह वाकिफ हैं। उनका उपराष्ट्रपति बनना देश के लिए फायदेमंद होगा। पीएम के ये शब्द काफी हैं, धनखड़ की शख्सियत बताने को।
जगदीप धनखड़ साल 2019 में पश्चिम बंगाल राज्य के गवर्नर बने। बंगाल में राज्य सरकार का कड़ा विरोध झेलने के बावजूद धनखड़ के व्यक्तित्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ममता बनर्जी ने कहा था कि अगर एनडीए एक बार उनसे कहती तो वो धनखड़ को अपना समर्थन देते,हालांकि टीएमसी ने चुनाव में वोटिंग से परहेज किया जो सीधे तौर पर एनडीए उम्मीदवार के पक्ष गया।
जगदीप धनखड़ का जन्म राजस्थान के झूंझणूं जिले में एक सुदूर किठाना गांव में कृषि परिवार में हुआ था। 71 वर्षीय धनखड़ पिछले तीन दशकों से सार्वजनिक जीवन में सक्रिय हैं। स्कूल के दिनों में धनखड़ को क्रिकेट खेलना काफी पसंद था।
सैनिक स्कूल से पढ़ाई करने के बाद धनखड़ साल 1989 में जनता दल पार्टी के सांसद के तौर पहली बार राजस्थान के झुंझुनू जिले से संसद पहुंचे थे।
इस दौरान उन्होंने संसदीय कार्यमंत्री के तौर पर अपनी सेवाएं दी। 1993 में वे अजमेर जिले के किशनगढ़ से राजस्थान विधानसभा पहुंचे। साल 2019 में उन्हें केंद्र सरकार द्वारा पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया।
जगदीप धनखड़ का राजस्थान उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में लंबा कानूनी सफर भी रहा है।
जगदीप धनखड़ की शादी 1979 में हुई थी। दोनों के दो बच्चे हुए। बेटे का नाम दीपक और बेटी का नाम कामना रखा। लेकिन ये खुशी ज्यादा दिन नहीं रही। 1994 में जब दीपक 14 साल का था, तब उसे ब्रेन हेमरेज हो गया।
इलाज के लिए दिल्ली भी लाए, लेकिन बेटा बच नहीं पाया। बेटे की मौत ने जगदीप को पूरी तरह से तोड़ दिया। हालांकि, किसी तरह उन्होंने खुद को संभाला।
जनता दल और कांग्रेस से जुड़े रहे धनखड़ करीब एक दशक के अंतराल के बाद 2008 में भाजपा में शामिल हुए थे। वे राजस्थान में जाट समुदाय को ओबीसी का दर्जा देने सहित अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित मुद्दों का समर्थन कर चुके हैं।