उस लोटे का पेंदा अब नहीं रहा, जिसे रोज नदी में डुबो कर भर लाते थे और पूरे घर की प्यास बुझ जाती थी।
अब वह भरते ही लुढ़क जाता है।
बह जाता है पानी। घर-परिवार तो दूर, वह खुद की प्यास भी नहीं बुझा पाता। बात महंगाई की है। पहले परिवार का एक व्यक्ति कमाता था और पूरे घर का पेट भर जाता था। अब वह बात कहां? अब घरभर कमाता है फिर भी भूखे का भूखा!
क्या दिन थे वो, जब 515 के स्केल में 875 रु. सैलरी बनती थी। एक स्कूटर भी होता था। अपना घर भी। बच्चों की शादी के लिए एकाध प्लाट की जुगाड़ भी रहती ही थी। 50 हजार की इनकम टैक्स लिमिट और पांच हजार का स्टैंडर्ड डिडक्शन होता था, फिर भी टैक्स से बच जाते थे। अब तो बेइंतहा सैलरी के बावजूद पूरा नहीं पड़ता।
मई से अब तक तीन बार रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ा चुका है। मई में 0.50, जून में 0.40 और शुक्रवार को फिर 0.50 रेपो रेट बढ़ा दी गई। लोन की ब्याज दरें आसमान पर जाने वाली हैं। ईएमआई पर जीवन चलाने के इस जमाने में कहना चाहिए कि पूरा जीवन ही महंगा होने जा रहा है। सही है, इससे जमा पर ब्याज की दरें भी बढ़ेंगी और लोगों को फायदा होगा लेकिन हमारी लापरवाह, लिजलिजी व्यवस्था यह होने नहीं देती।
रिजर्व बैंक द्वारा जो भी बदलाव किए जाते हैं, तमाम बैंक लोन पर लेने वाले ब्याज तो तुरंत बढ़ा देते हैं, लेकिन जमा पर ब्याज बढ़ाने का नाम नहीं लेते। यानी बैंकों को जो वसूली करनी होती है, वह तो तुरंत सवाई हो जाती है, लेकिन हमारा जो पैसा उनके पास जमा पड़ा है, वह पड़ा ही रह जाता है वैसे का वैसा। उस पर ब्याज बढ़ाने की बैंकों को याद नहीं आती।
रिजर्व बैंक जो इन सब बैंकों को गवर्न करता है, उसे भी कोई फिक्र नहीं होती। आखिर जो लोग बैंकों में पैसा रखे हुए हैं, उन्होंने कोई अपराध किया है? अगर नहीं तो जिस फुर्ती से लोन पर ब्याज बढ़ाया जाता है, जमा पर ब्याज बढ़ाने में भी वही फुर्ती क्यों नहीं दिखाई जाती?
आप इनकम टीडीएस की तारीख चूक नहीं सकते। इनकम टैक्स रिटर्न की तारीख तो पत्थर की लकीर होती है। वर्ना आजकल आयकर और ईडी का भूत रात-बे-रात आकर डरा जाता है। हां, आपके जमा की तारीखें लगातार, महीनों सालों चूकती जाएं तो भी किसी बैंक, किसी वित्त मंत्रालय या किसी सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता।
दरअसल, यह सब हमारी कमजोरी है। आम आदमी की। सरकार को सब कुछ ईमानदारी से चुका कर भी हम अपनी बचत को संभालने में चूक करते हैं। यही वजह है कि कोई बैंक हमारी परवाह नहीं करता। ऊपर से ये महंगाई! अप्रैल 2022 में खुदरा महंगाई दर 7.8 फीसदी थी जो मई 2014 के बाद सबसे ज्यादा है।
इसी तरह अप्रैल 2022 में थोक महंगाई दर 15.08 प्रतिशत पर पहुंच गई थी, जो दिसंबर 1998 के बाद सबसे ज्यादा थी। हालांकि पेट्रोल-डीजल पर टैक्स कम करने, सोयाबीन, सनफ्लावर ऑयल पर आयात शुल्क घटाने और विमानन ईंधन सस्ता करने से महंगाई के आंकड़े नीचे आने की उम्मीद तो है, लेकिन रिजर्व बैंक के कदमों से ऐसे संकेत कम ही मिलते हैं।