अमेरिकी हाउस स्पीकर नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे के साथ ही चीन बेहद आक्रामक हो उठा है। उसने गुरुवार को ताइवान के नजदीक सैन्य अभ्यास शुरू कर दिया।
वहीं शुक्रवार को ताइवान की तरफ से दावा किया गया कि कई चीनी विमान उसके करीब से गुजरे हैं। चीन के लगातार आक्रामक होते रुख के बीच एक सवाल लगातार उठ रहा है कि अगर उसने ताइवान पर हमला कर दिया तो क्या होगा?
चीन के हमले से ताइवान का बचाव करेगी एक खास रणनीति। यह रणनीति साल 2008 में अमेरिकी नेवी के एक रिसर्च प्रोफेसर ने तैयार की थी।
इसका सबसे बड़ा मकसद है एक वॉल ऑफ फायर तैयार करना, जो चीनी सेना के हमले को नाकाम कर दे। आइए जानते हैं क्या है यह खास रणनीति…
आखिर क्या है ‘साही’ रणनीति
ताइवान को चीन के हमले से बचाने की इस रणनीति का नाम है ‘पॉर्कुपाइन डॉक्ट्रिन’। यह नाम लिया है साही नाम के एक जानवर से। इस जानवर के शरीर पर काफी ज्यादा कांटे होते हैं जो मुश्किल हालात में उसकी रक्षा करते हैं।
ताइवान ऐसी ही स्ट्रैटजी से अपनी रक्षा करेगा। अमेरिकी नेवी के एक रिसर्च प्रोफेसर विलियम ए मुरे ने यह प्लान कमजोर देशों की रक्षा के लिए बनाया था।
इसे कुछ इस तरह डिजाइन किया गया है कि ताकतवर देश कमजोर देश पर हमला भले कर दे, लेकिन न उसे हरा पाएगा और न ही नुकसान पहुंचा पाएगा। इसमें कमजोर देश का रक्षातंत्र अपनी ताकत के बजाए दुश्मन की कमजोरी को निशाना बनाता है।
चीन के लिए बढ़ेगी मुश्किल
सुरक्षा की बाहरी परत से किसी तरह के सरप्राइज अटैक से बचाव होगा। वहीं दूसरी परत यह सुनिश्चित करेगी कि चीन के सैनिक ताइवान में उतरने न पाएं। गुरिल्ला वॉर की तर्ज पर समुद्र में छोटी जहाजों से उन्हें मिसाइल और हेलीकॉप्टरों के जरिए निशाना बनाया जाएगा।
यहां तक कि अगर चीन की सेना ताइवान में पहुंच भी जाती है तो उसके लिए अंदर घुसकर हमला करना मुश्किल होगा। इसमें ताइवान के लिए मददगार बनेगा यहां का पहाड़ी और शहरी वातावरण। एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन द्वारा हमले को लेकर उठाया गया कोई भी कदम उसके लिए घातक साबित होगा।
अमेरिकी वायुसेना से मिलेगा सपोर्ट
लंदन के किंग्स कॉलेज में डिफेंस स्टडीज डिपार्टमेंट में लेक्चरर डॉक्टरी जीनो लियोनी ने इसके बारे में और विस्तार से लिखा है। उन्होंने ‘पॉर्कुपाइन डॉक्ट्रिन’ रणनीति के तहत सुरक्षा की तीन परतें बनाई हैं।
किंग्स कॉलेज लंदन की वेबसाइट पर पिछले साल प्रकाशित लेख में उन्होंने इसकी बारीकियों के बारे में बताया है। इसके मुताबिक ताइवान में सुरक्षा की बाहरी परत इंटेलीजेंस पर फोकस करेगी और यह सुनिश्चत करेगी कि डिफेंस फोर्सेज को तैयारी का पूरा मौका मिले।
दूसरी परत में समुद्र में गुरिल्ला वॉर की तैयारी है और अमेरिका द्वारा वायुसेना से सपोर्ट मिलेगा। वहीं तीसरी और सबसे आखिरी परत द्वीप के भौगोलिक और जनसंख्या पर निर्भर करेगा।