‘रेवड़ी कल्चर’ पर लगना चाहिए बैन? सुप्रीम कोर्ट में आज फिर होगी सुनवाई…

नई दिल्ली/ देश भर में चुनाव से पहले लगभग हर राजनीतिक पार्टियां जनता को अपने पाले में करने के लिए कई तरह के ऐलान करती है।

खास कर हर चीज़ मुफ्त में बांटने का प्रचलन सा चल पड़ा है।

इसे आम भाषा में ‘रेवड़ी कल्चर’ कहा जाता है इन ‘मुफ्त उपहारों’ के वादे पर कैसे लगाम लगाया जाए इसको लेकर आज एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी।

इस साल जनवरी में इस मुद्दे को लेकर जनहित याचिका दायर की गई थी बीजेपी नेता और सीनियर वकील अश्विनी उपाध्याय ने रेवड़ी कल्चर पर बैन लगाने की मांग की है।

इस मामले को लेकर पिछली बार 26 जुलाई को सुनवाई हुई थी उस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग पर तल्ख टिप्पणी की थी। सीजेआई एनवी रमण के नेतृत्व वाली तीन जजों की पीठ ने कहा था।

कि अगर चुनाव आयोग मुफ्त में सामान बांटने वाले दलों का कुछ नहीं कर सकती। तो फिर उसे भगवान ही बचाए SC ने चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले ‘तर्कहीन मुफ्त उपहारों’ के वादे को ‘गंभीर’ बताया था।

ये बेहद गंभीर मामला

पिछली बार सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने ये भी कहा था कि ये ‘एक बेहद गंभीर मुद्दा’ है इसके अलावा सीजेआई ने केंद्र सरकार से मौजूदा हालात पर लगाम लगाने को लेकर कदम उठाने को कहा था।

चुनाव आयोग की ओर से पेश वकील ने कोर्ट को बताया कि मुफ्त उपहार और चुनावी वादों से जुड़े नियमों को आदर्श आचार संहिता में शामिल किया गया है, लेकिन इस बैन लगाने के लिए सरकार को कई कानून बनाना होगा।

कपिल सिब्बल से मांगी गई राय

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान वरिष्‍ठ वकील और संसद कपिल सिब्‍बल से भी राय मांगी थी सिब्‍बल ने कहा था के ये बेहद गंभीर मामला है।

उन्होंने तर्त दिया था कि ये मामला राजनीतिक है इसलिए सरकार से किसी फैसले की उम्‍मीद नहीं है सिब्बल ने सलाह दी थी कि इस मामले में वित्त आयोग को बुलाया जाना चाहिए।

केंद्र और चुनाव आयोग से मांगा गया था जवाब

इस साल जनवरी में प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने केंद्र और चुनाव आयोग दोनों से इस मामले को लेकर जवाब मांगा था।

अब इन दोनों की तरफ से जवाब मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट में बहस चल रही है याचिका में कहा गया है कि मतदाताओं से अनुचित राजनीतिक लाभ लेने लिए इस तरह की लोकलुभावन रणनीति पूरी तरह बैन लगना चाहिए।

क्योंकि वे संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन करते हैं, और चुनाव आयोग को उनके खिलाफ कड़े और सही कदम उठाने चाहिए।

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