बालिगों के वैवाहिक रेप को क्राइम नहीं मानने वाले कानून की वैधता पर सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट…

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह कर्नाटक हाई कोर्ट न्यायालय और दिल्ली हाईकोर्ट के इस मुद्दे पर दिए गए हाल के फैसलों के खिलाफ अपील के साथ ही वैवाहिक बलात्कार (marital rape) को वैध बनाने वाली भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 के तहत दिए गए अपवाद की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जनवरी के दूसरे हफ्ते में सुनवाई करेगा।

उस याचिका पर एक अलग सुनवाई के लिए अड़ी सीनियर एटवोकेट इंदिरा जयसिंह को मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और पीएस नरसिम्हा की पीठ ने एक संयुक्त सुनवाई के लिए समझाकर राजी कर लिया।

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के मुताबिक बाद में जयसिंह वकील सीयू सिंह और करुणा नंदी के साथ उस सुनवाई में शामिल होने के लिए सहमत हो गईं जो धारा 375 के ‘अपवाद’ को खत्म करने के मुद्दे पर होने वाली है।

अगर सुप्रीम कोर्ट उनके हक में फैसला देता है, तो वैवाहिक बलात्कार आईपीसी की धारा 376 के तहत दंडनीय अपराध बन जाएगा।

आईपीसी की धारा 375 बलात्कार के अपराध को परिभाषित करती है। लेकिन साथ ही ये एक अपवाद प्रदान करती है।

जिसके तहत ‘अगर पत्नी की उम्र 15 वर्ष से कम नहीं है, तो एक पुरुष का अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बलात्कार नहीं है।’

जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के 23 मार्च के फैसले पर रोक लगा दी थी। जिसमें एक पत्नी की इच्छा के खिलाफ उसके साथ जबरन यौन संबंध बनाने के लिए एक पति पर मुकदमा चलाने की अनुमति दी गई थी।

जबकि 11 मई को जस्टिस राजीव शकधर और हरि शंकर की दिल्ली हाई कोर्ट की बेंच ने आईपीसी की धारा 375 के ‘अपवाद’ की संवैधानिकता पर बंटा हुआ फैसला सुनाया था।

जहां न्यायमूर्ति शकधर ने इसे असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर दिया, वहीं न्यायमूर्ति शंकर ने याचिकाकर्ताओं की याचिका खारिज कर दी।

हालांकि दोनों जज सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील दाखिल करने के लिए एक प्रमाण पत्र जारी करने पर सहमत थे।

अक्टूबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था कि 18 साल से कम उम्र के एक पुरुष और उसकी पत्नी के बीच सेक्स को बलात्कार माना जाएगा और पति को IPC के तहत 10 साल तक की कैद या पॉक्सो के तहत उम्रकैद की सजा हो सकती है।

हालांकि इसके बावजूद वैवाहिक बलात्कार का मुद्दा अनसुलझा रहा। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि उसने वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘हम यह स्पष्ट करते हैं कि हमने 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र की महिला के वैवाहिक बलात्कार के संबंध में कोई टिप्पणी करने से परहेज किया है।

क्योंकि यह मुद्दा हमारे सामने बिल्कुल भी नहीं है।’

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