सैयद जावेद हुसैन, सह संपादक, छत्तीसगढ़:
धमतरी- विकासखंड की दो अलग पंचायतों से अतिक्रमण का मामला इन दिनों चर्चा में है, जिसमे जिला प्रशासन के राजस्व अमले द्वारा एक गरीब का घर बिना नोटिस व बिना पंचायत को सूचना दिए तोड़ दिया गया, तो वही दूसरे मामले में अतिक्रमणकारी- सरपंच का रिश्तेदार होने के कारण न्यायालय नायब तहसीलदार द्वारा कार्यवाही नही की जा रही है!
जानें पूरा मामला…
पहला मामला ग्राम पंचायत कलारतराई का है जहाँ के ग्रामीणों ने 4 अगस्त को कलेक्टर कार्यालय, एसडीएम कार्यालय व जनपद पंचायत में ग्राम पंचायत सरपंच द्वारा घासभूमि में अवैध भवन निर्माण की शिकायत किए थे, शिकायत के एक महीने बाद 7 सितंबर को नायब तहसीलदार मौके की जांच पर गए जहाँ जांच पश्चात शासकीय घासभूमि खसरा न. 838 रकबा 0.80 हेक्टेयर भूमि के टुकड़े पर 1119 वर्गफुट पर अवैध निर्माणधीन भवन पाया गया, लेकिन ग्राम पंचायत सरपंच ने उस निर्माण को खुद का न बताकर अपने रिश्तेदार का होना बताया जिसके बाद नायब तहसीलदार द्वारा कार्य पर रोक लगाकर अवैध निर्माण हटाने का आदेश जारी किए, बावजूद इसके निर्माण कार्य जारी रहा, न्यायालय नायब तहसीलदार द्वारा सरपंच को लगातार अतिक्रमण हटाने ज्ञापन जारी किया गया।
लेकिन सरपंच तो सरपंच है उसे न्यायालय के आदेशों से कोई सरोकार नही रहा, उल्टा अब सरपंच खुद अपनी देखरेख में उक्त भवन का कार्य करवा रहा है, जिससे स्पष्ट है कि एक सरपंच के आगे जिला प्रशासन का राजस्व अमला नतमस्तक नजर आ रहा है।
तो वहीं दूसरा मामला ग्राम पंचायत पोटियाडीह का है जहाँ एक गरीब परिवार का घर राजस्व टीम द्वारा बिना नोटिस दिए और बिना पंचायत को सूचना दिए तोड़ दिया गया है! जिससे पीड़ित परिवार के सामने रोटी-कपड़ा-मकान जैसी अनेक मूलभूत समस्याओं का पहाड़ टूट पड़ा है।
पीड़िता के पास एक 1 साल से कम उम्र का नवजात शिशु भी है जिसे लेकर पीड़िता दर-दर भटकने को मजबूर हैं, पीड़िता ने बताया की बिना सूचना दिए मकान को तोड़ दिया गया, किसी भी प्रकार से सामान को निकालने तक का समय भी नही दिया गया साथ ही पीड़ित परिवार के सभी लोगों को कार्यवाही के पूर्व थाना में बैठा दिया गया, और मकान को ढहा दिया गया है, पीड़ित परिवार का कहना है कि प्रशासन द्वारा जिस मकान को घांस भूमि में स्थित बताकर तोड़ा गया वो उनकी लगानी जमीन है, जहाँ उनके द्वारा मकान बनाया गया था, वही इस मामले में ग्राम पंचायत पोटियाडीह के सरपंच ने बताया कि अधिकारियों द्वारा पंचायत से न ही पूछा गया है और न नोटिस दी गई, जबकि अतिक्रमण हटाया जाना था तो पंचायत से सहयोग लिया जाना था, उसे जानकारी दी जानी चाहिए थी।
बहरहाल इन दोनों मामलों से अब सवाल ये उठता है कि अवैध अतिक्रमण को लेकर यदि जिला प्रशासन वाकई सक्रिय है तो फिर सरपंच की मौजूदगी शासकीय घांस भूमि पर अवैध रूप से बनाए जा रहे मकान को आखिर क्यों नही तोड़ा जा रहा है? क्या सरपंच के पास जिला प्रशासन से ज्यादा पावर आ गया है? चर्चा व्याप्त।
वैसे सूचना मिली है कि सरपंच द्वारा अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अवैध रूप से भवन बनवाने के मामले को लेकर अब ग्रामीण मुख्यमंत्री के आगामी भेंट मुलाकात कार्यक्रम की राह देख रहे हैं, जिसमे ग्रामीण खुद सरपंच व कुछ अधिकारियों की शिकायत की योजना बना चुके हैं।