राजस्थान कांग्रेस के कद्दावर विधायक रहे पंडित भंवरलाल शर्मा के निधन से खाली हुई चूरू जिले की सरदारशहर विधानसभा सीट पर उपचुनाव (Sardarshahar assembly seat by-election) होने जा रहा है।
नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 17 नवंबर है। ऐसे में बीजेपी और कांग्रेस (BJP-Congress) समेत सभी दल अपने प्रत्याशियों के नाम का ऐलान अगले 48 घंटों में कर देंगे।
कांग्रेस और बीजेपी के साथ-साथ अन्य क्षेत्रीय दलों ने भी विधानसभा उपचुनाव को लेकर अपनी अपनी तैयारियां कर रखी है।
सूत्रों के मुताबिक बीजेपी की टिकट की दौड़ में पूर्व विधायक अशोक पींचा का नाम सबसे आगे चल रहा है।
बताया जा रहा है कि पार्टी स्तर पर पींचा के नाम पर लगभग सहमति बन चुकी है। लेकिन अभी तक इसका औपचारिक ऐलान नहीं किया गया है।
अशोक पींचा सरदारशहर से पूर्व में एक बार विधायक रह चुके हैं। पींचा जैन समाज से ताल्लुक रखते हैं। 62 वर्षीय अशोक पींचा जनसंघ के दौर से ही पार्टी और विचारधारा से जुड़े हुए हैं।
वहीं कांग्रेस पार्टी से पूर्व विधायक स्व। भंवरलाल शर्मा के बेटे अनिल शर्मा का टिकट लगभग तय माना जा रहा है। उनके नाम की भी औपचारिक घोषणा का इंतजार किया जा रहा है।
शर्मा ने पिछला चुनाव 16 हजार वोटों के अंतर से जीता था
सरदारशहर को कांग्रेस के दबदबे वाली सीट माना जाता है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के भंवरलाल शर्मा ने करीब 16 हजार वोटों के बडे अंतर से प्रतिद्वंदी को शिकस्त दी थी।
वहीं अगर 2013 के विधानसभा चुनाव पर नजर डाले तो उस चुनाव में मोदी लहर होने के बावजूद कांग्रेस के भंवरलाल शर्मा करीब 7 हजार वोटों के मार्जिन से विधानसभा चुनाव जीते थे।
उससे पहले अशोक पींचा 2008 से 2013 तक सरदारशहर विधानसभा सीट से बीजेपी के विधायक रहे।
कांग्रेस उपचुनाव में पुरानी रणनीति अपनाने के मूड में है
पंडित भंवरलाल शर्मा के निधन के बाद अब कांग्रेस उनके ही परिवार को टिकट थमाकर उपचुनाव के रण को जीतना चाहती है।
पूर्व में हुए उपचुनावों में भी कांग्रेस ने दिवंगत विधायकों के परिजनों को टिकट देकर अपनी सीट को बरकरार रखी थी।
यहां भी कांग्रेस उसी फॉर्मूले को अपनाने के मूड में दिखाई दे रही है। कांग्रेस एक बार फिर सहानुभूति लहर की पर सवार होकर अपनी सीट को बनाए रखने के मूड में है।
उपचुनावों में सहानुभूति की लहर काफी प्रभावशाली रही है
इस विधासनसभा काल में राजस्थान में हुए उपचुनाव के इतिहास को देखें तो दोनों ही प्रमुख पार्टियों के बीच सहानुभूति की लहर काफी प्रभावशाली रही है।
हालांकि बीजेपी ने धरियावद विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के दौरान दिवंगत विधायक के परिजनों को टिकट नहीं दी थी।
उसका खामियाजा भी पार्टी को भुगतना पड़ा और बीजेपी का आधिकारिक प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहा था।