हिमाचल में किसकी बनने जा रही सरकार? वोटिंग बाद एक्सपर्ट्स ने दी राय, जानें- हवा किस तरफ?

हिमाचल प्रदेश की कुल 68 विधानसभा सीटों के लिए 12 नवंबर को मतदान संपन्न हो गए।

हिमाचल प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) की वेबसाइट के मुताबिक राज्य में कुल 74.05 फीसदी वोटिंग हुई है।

चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, सोलन जिले में सबसे अधिक 76.82% मतदान प्रतिशत दर्ज किया गया।

ऊना और कुल्लू जिले में भी सोलन की तरह खूब वोटिंग हुई है जहां क्रमश: 76.69% और 76.15% मतदान हुआ।

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में 69.88 फीसदी मतदान हुआ है। बंपर वोटिंग के साथ ही राज्य में अब नई सरकार की संभावनाओं पर चर्चा का बाजार गर्म है। 

राजनीतिक गतिविधियों और लंबे वक्त से चुनावी पैटर्न पर नजर रखने वालों एक्सपर्ट्स के मुताबिक इस पहाड़ी प्रदेश में इस बार भी बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है।

राकेश कपूर, वरिष्ठ पत्रकार : राज्य में कांग्रेस और बीजेपी ने काफी सूक्ष्म स्तर पर काम किया।  लेकिन बड़ी बात यह है कि यहां बीजेपी चुनाव नहीं लड़ रही थी बल्कि प्रधानमंत्री चुनाव लड़ रहे थे, जबकि कांग्रेस की तरफ से हर कार्यकर्ता चुनाव लड़ रहा था। बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती बागियों की रही। एक बागी तो ऐसे निकले जो प्रधानमंत्री द्वारा मनाए जाने के बाद भी नहीं माने और चुनाव लड़े।

कपूर के मुताबिक, बीजेपी के इश्तेहारों में पूर्व पीएम वाजपेयी जी की तस्वीर थी, जबकि कांग्रेस के इश्तेहार में पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह की तस्वीर थी और लिखा था- मुझे याद रखिएगा। कुल मिलाकर बीजेपी राष्ट्रीय मुद्दों पर जबकि कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ा। कांग्रेस ने ओपीएस, महंगाई, बेरोजगारी और पेंशन के मुद्दे को प्रमुखता दी। यहां हर घर में सरकारी नौकरी करने वाले लोग हैं। लिहाजा, पुरानी पेंशन का मुद्दा यहां बड़ा मुद्दा बनता दिखा। पिछले उप चुनाव में भी स्थानीय मुद्दों की वजह से कांग्रेस यहां जीत चुकी है।

बीडी शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार :  राज्य में छोटे परसेंट मार्जिन से हार-जीत तय होती है। यहां बीजेपी की सबसे बड़ी समस्या बागियों की है। बीजेपी में करीब दो दर्जन बागी हैं, जबकि कांग्रेस में आधा दर्जन बागी हैं। कांग्रेस एक हद तक बागियों को मैनेज कर चुकी है, जबकि बीजेपी के बागी नहीं माने और मैदान में डटे रहे।

बतौर शर्मा, बीजेपी के बागी बी टीम के तौर पर काम कर रही थे। यह कांग्रेस के लिए थोड़ी फायदेमंद हो सकती है। शर्मा ने कहा कि चूंकि हिमाचल छोटा राज्य है, इसलिए यहां कई सीटों पर 1000 से भी कम वोट से हार-जीत तय होता रहा है। ऐसे में अगर बागियों ने करीब दो दर्जन सीटों पर खेल किया तो बीजेपी की राह बहुत मुश्किल हो सकती है। 2017 के चुनाव में 17 सीटों पर हार-जीत 1500 वोटों के मार्जिन से हुई थी।

प्रभु चावला, वरिष्ठ पत्रकार : आम आदमी पार्टी हिमाचल प्रदेश के चुनावी मैदान में है लेकिन असरकारी नहीं दिख रही। लिहाजा, मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही है। बीजेपी हिमाचल में रक्षात्मक रूप से लड़ रही है जबकि कांग्रेस आक्रामक मोड में है। टक्कर प्रधानमंत्री और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच है क्योंकि सरकार ने वहां विकास का कोई काम नहीं किया है। टूरिज्म के क्षेत्र में काम हो सकता था, आधारभूत संरचना का विकास हो सकता था लेकिन वहां हुआ नहीं। कांग्रेस स्थानीय मुद्दों की बात कर रही है, जबकि बीजेपी राष्ट्रीय स्तर की बात कर रही है। बीजेपी के खिलाफ राज्य औऱ केंद्रीय दोनों स्तर पर एंटी इनकमबेंसी फैक्टर भी है।

विनोद अग्निहोत्री, वरिष्ठ पत्रकार : हिमाचल में लोकल मुद्दे हावी रहे हैं। ओपीएस वहां एक बड़ा मुद्दा है। वहां करीब हर घर से एक शख्स सरकारी कर्मचारी है। बीजेपी के शांता कुमार बहुत लोकप्रिय और ईमानदार मुख्यमंत्री थे, बावजूद इसके वो हारे क्योंकि वहां के सरकारी कर्मचारी उनकी नीतियों की वजह से नाराज थे। कांग्रेस जो भी मुद्दे उठा रही है, वह स्थानीय जरूर है लेकिन वह केंद्र से जुड़े मुद्दे हैं। यानी कांग्रेस स्थानीय मुद्दों के सहारे केंद्र पर भी निशाना साधती रही है। कांग्रेस ने यह चतुराई की कि राहुल को हिमाचल से दूर रखा क्योंकि अगर राहुल वहां जाते तो वह राष्ट्रीय मुद्दों की बात करते और उन पर बीजेपी लीड ले सकती थी।

संजय कुमार, चुनावी विश्लेषक: PM मोदी की पॉपुलरिटी बरकरार है लेकिन राज्य सरकार के परफॉर्मेन्स पर लोग सवाल उठा रहे हैं। बेरोजगारी, महंगाई, खाद्य वस्तुओं की कीमतों में इजाफा का मुद्दा राज्य में बरकरार है। कांग्रेस इसे भुनाने की कोशिश में लगी रही। आम आदमी पार्टी कहीं मुकाबले में नहीं दिखी।

 

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